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चारित्र चक्रवर्ती महान् कार्य की सफलता के मुख्य कारण रत्नत्रय मूर्ति आचार्य शांतिसागर महाराज हैं
और फिर ज्ञात-अज्ञात सेवक हजारों-लाखों नर-नारी हैं, जिन्होंने व्रत धारण किए, जाप किए तथा आध्यात्मिक साधना द्वारा सफलता का उद्योग किया। यह सोचना ठीक नहीं है कि जो व्यक्ति सामने आते रहे, उन्होंने ही सब कुछ किया।
स्वप्न
__ उस भाषण में हमने आचार्य महाराज के एक महत्वपूर्ण स्वप्न का उल्लेख किया, जो आचार्य महाराज ने देखा कि एक मुर्दा उनके पास आ रहा है। उसका सब लोगों ने ईंधन डालकर दाह किया, किन्तु वह पूरा नहीं जला। इससे महाराज ने उसमें लकड़ी डाली और वह तत्काल भस्म हो गया।
इस स्वप्न का अर्थ बारामती में समझ में नहीं आ पाया था, किन्तु फैसला होने के बाद ज्ञात हुआ कि वह संकट का शव था। सबके उद्योग करने पर भी वह विपत्ति बनी रही। अंत में आचार्य महाराज ने अपनी आध्यात्मिक शक्ति द्वारा योगदान किया। इससे उस संकट की समाप्ति हो गई। स्थूल भाषा में वह हरिजन मंदिर-प्रवेश कानून द्वारा लाई गई विपत्ति का शव था। शव इसलिए था कि वह प्रारंभ से ही मृतक सदृश था। ___ ता. २४ की रात्रि को दक्षिण की बहुत-सी मंडली के साथ हम आचार्यश्री के पास बारामती चलने को रवाना हुए। बार-बार यही विचार मन में आता था कि जब तक आचार्यश्री ने अन्नग्रहण नहीं किया, तब तक सफलता नहीं मानी जायगी अपना हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट तो महाराज का निर्णय हैं।
महाराज के पास पहुंचे, तो उनकी पूर्ण चिंता तार आने पर भी दूर नहीं हुई थी।
वे बोले-“तार में तुम्हारे या शहा वकील के दस्तखत न होने से हमें पूरा संतोष नहीं हुआ और संदेह बना रहा।" इससे ज्ञात हुआ कि आचार्य महाराज भावावेश से भुलावे में आने वाले व्यक्ति नहीं है। __ हम लोगों ने कहा -“महाराज, सफलता का तनिक भी रूप पहले नहीं दिख रहा था, किन्तु सहसा न्यायाधीशों ने ही सच्चे वकीलों का काम किया। गजेन्द्र गड़कर जज का भय था; किन्तु वे ही सरकारी वकील को अपने प्रश्नों द्वारा अवाक् कर देते थे। यह सब आपके चरणों का प्रसाद है।" __ आचार्य महाराज ने कहा-“हमारा कुछ नहीं है। सब महावीर भगवान् की कृपा है। हमने कह दिया था, यह संकट अधिक दिन तक नहीं रहेगा।" आचार्यश्री से प्रार्थना हमने तथा उपस्थित मंडली ने महाराज से विनय की-“महाराज, सेवा करने वाला
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