________________
प्रभावना
२८०
चारित्र चक्रवर्ती
यहाँ पर आचार्य महाराज को समस्त जैन संघ ने चारित्र चक्रवर्ती पद से अलंकृत कर अपने को धन्य समझा। इस अवसर पर हमें भी पहुंचने का सौभाग्य मिला था। नागपुर के धनिक त्यागी श्रीमान् फतेचन्दजी ने ब्रह्मचर्य प्रतिमा धारण की थी। उक्त ब्रह्मचारीजी ने अपने जीवन में मुक्तागिरि सिद्ध क्षेत्र के जीर्णोद्धार का महत्वपूर्ण कार्य किया। नागपुर में कई लाख खर्च कर उन्होंने सुन्दर दि. जैनधर्मशाला बनवाई थी। वह सार्वजनिक है।
महाराज ने बारामती में संवत् १९६५ अर्थात् सन् १६३६ का चातुमार्स व्यतीत किया। यहाँ पर्युषण पर्व में आचार्यश्री के समीप पहुंचने का हमें सौभाग्य मिला था। इसके अनन्तर विहार करते हुए आचार्य महाराज मुक्तागिरि पधारे थे। पश्चात् वे इन्दौर आये थे। यहाँ रावराजा सर सेठ हुकमचन्दजी ने आचार्यश्री से ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण किया था। बड़वानी तथा सिद्धवरकूट की वंदना के उपरांत संघ ने प्रतापगढ़ में पुनः चातुर्मास किया।
इसके पश्चात् विहार करते हुए सन् १९४१ में कोरोची चातुर्मास किया। यह पूना से १८३ मील पर है। इसके बाद डिग्रज में चातुर्मास हुआ। आगामी चातुर्मास कुन्थलगिरि में हुआ। यहाँ धर्मप्रभावना के अनंतर महाराज फलटन पधारे थे।
इसके अनन्तर विहार करते हुए वे सन् १९४६ में कवलाना पहुंचे। सन् १९४६ के अगस्त में बम्बई में हमने जैन राजनैतिक स्वत्वरक्षक समिति की विशेष बैठक बम्बई में बुलाई थी । जिसमें इस महत्वपूर्ण विषय पर विचार हुआ था कि केबिनेट मिशन (Cabinet Mission) के द्वारा भारतवर्ष की स्वराज्य प्रदान करने की योजना को दृष्टिपथ में रखते हुए जैन समाज को अपने स्वतंत्र अस्तित्व के विषय में पूर्णतया सतर्क रहना चाहिए, जिससे बहुसंख्यक वर्ग में उसका विलीनीकरण होकर अस्तित्व समाप्त न हो जाय ।
इस महत्वपूर्ण बैठक में निर्णीत प्रस्ताव के उत्त में सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपने पत्र द्वारा जैन समाज को यह विश्वास दिलाया था कि भारतवर्ष के स्वाधीन होने पर प्रत्येक धर्म की स्वतंत्रता को बाधा नहीं पहुँचेगी। बम्बई की मीटिंग के उपरांत हम अपने छोटे भाई डॉ. सुशीलकुमार दिवाकर के साथ कवलाना आचार्य श्री के दर्शनार्थ पहुंचे थे । वहाँ उनसे महत्वपूर्ण चर्चा द्वारा अपूर्व प्रकाश प्राप्त किया था। सोलापुर चातुर्मास
इसके अनंतर सन् १९४७ का चातुर्मास सोलापुर में हुआ था । वहाँ दशलक्षण पर्व में हमें पहुंचने का सौभाग्य मिला था। यहां शास्त्र पढ़ने की आज्ञा आचार्यश्री ने हमें
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org