SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 384
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७६ चारित्र चक्रवर्ती के हेतु होता है।' आचार्य महाराज का कार्य आत्मसाधना तथा प्राणियों को कल्याण पथप्रदर्शन का सतत चलता जाता था। यही तो उनके जीवन का व्रत रहा है। ब्यावर ___ जयपुर के समान उनका उत्तरप्रांत में छठवाँ चातुर्मास ब्यावर में सम्पन्न हुआ। ब्यावर में दि. जैन महासभा का अधिवेशन हुआ था। सेठ चम्पालालजी रानीवाल ने सपरिवार आचार्य संघ की अपूर्व भक्ति की थी। रायबहादुर धर्मवीर सेठ टीकमचन्दजी सोनी गुरुभक्ति से आकर्षित होकर प्रतिदिन अजमेर से व्यावर आकर आहार की विधि लगाते थे। ___ आहार के उपरांत वे प्रतिदिन स्वधाम को वापिस जाते थे। ऐसी गुरुभक्ति करने वाले विरले ही भाग्यवान् होते हैं। उदयपुर __ आचार्य संघ के द्वारा राजस्थान में अच्छी धर्म-प्रभावना हुई। आचार्यश्री का आगामी चातुर्मास उदयपुर में सम्पन्न हुआ था। वहाँ भी उनके द्वारा रत्नत्रय धर्म का महान् प्रचार हुआ। गोरल __ उदयपुर चातुर्मास के बाद महाराज ने धर्मप्रभावना करते हुए ईडर से सात मील दूरी पर गोरल नामक स्थान में सन् १९३५ में चातुर्मास किया था। वहाँ सोलापुर की ब्र. कंकूबाई ने क्षुल्लिका दीक्षा ली थी। उनका नाम जिनमती अम्मा रखा गया था। अम्मा प्रख्यात् कोट्याधीश महान् उद्योगपति सेठ बालचन्द हीराचन्द की बहिन थी। आचार्य महाराज के पवित्र प्रभाव से बड़े-बड़े लोगों ने संयम की सच्ची महत्ता को कारण जानकर उसकी शरण ली। प्रतापगढ़ __इसके अनंतर महाराज ने संघपति सेठ पूनमचन्दघासीलाल के निवास स्थान प्रतापगढ़ में चातुर्मास किया। यहाँ आचार्य महाराज के संघ में महाराज के सबसे छोटे भाई ब्र. कुंमगौड़ा पाटील भी थे। दोपहर के समय ब्र. कुंमगौड़ा का उपदेश हुआ करता था। यहाँ से विहार कर महाराज का संघ बड़वानी सिद्धवरकूट होता हुआ मुक्तागिरि पधारा था। गजपंथा इसके अनन्तर महाराज ने गजपंथा की ओर विहार किया। वहाँ के चातुर्मास में बड़ी धर्मप्रभावना हुई। गजपंथा में पंचकल्याणक महोत्सव बड़े आनन्द के साथ हुआ था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy