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चारित्र चक्रवर्ती दी थी। सूक्ष्म तत्त्वचर्चा द्वारा अपूर्व आनंद आया था । यहाँ पर ही आचार्य महाराज के नेत्रों में कांचबिन्दु रोग का पता चला था । डॉक्टर ने आँख के ऑपरेशन की सलाह दी थी किन्तु उसे महाराज ने पसंद नहीं किया था । नेत्रविशेषज्ञ डॉक्टर सरदेसाई ने कहा था कि- ऑपरेशन करने पर कुछ प्रयोग असफल हो जाते हैं, जिससे नेत्रों की ज्योति चली जाती है। इस पर महाराज ने विचारा कि यदि डॉक्टर के प्रमाद आदि के कारण कदाचित् असमय में ज्योति चली गई, तो तत्काल समाधिमरण लेना पड़ेगा, क्योंकि आँखों के चले जाने के बाद यत्नाचारपूर्व प्रवृत्ति नहीं हो सकेगी। ऐसी स्थिति में महाराज ने ऑपरेशन के अवलंबन को दूरदर्शी रूप में अनुभव करके नहीं कराया ।
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दक्षिण प्रान्त में संयम की अनुकूलता इस प्रान्त में यह विशेष बात है कि कोल्हापुर, बेलगांव, सांगली आदि के आसपास के निकटवर्ती ग्रामों में जैनियों की संख्या बहुत है। हजार घर वाले ग्राम में सहज ही पचहत्तर प्रतिशत जैनियों की संख्या का पाया जाना साधारण बात समझी जाती है। यहाँ मुनिजीवन व्यतीत करने के लिये सर्वप्रकार की अनुकूलता पायी जाती है। श्रावक समुदाय प्रायः कृषिजीवी हैं। वे शुद्ध खानपान किया करते हैं। शुद्ध घी, दूध, जल, भोजनादि की स्वत: अनायास व्यवस्था पायी जाती है। जिस तरह अन्य प्रांतों में साधु के आहार कराने के लिए आहार आदि की व्यवस्था करने में लोगों को अपने प्रांत में फैले शिथिलाचार के जाल के कारण कठिनता मालूम पड़ती है, वैसी स्थिति यहाँ नहीं है। यह प्रान्त समशीतोष्ण कटिबंध में है। यहाँ न ग्रीष्म का संताप प्रचंडता दिखाता है और न ठंड का प्रकोप ही असह्य पीड़ा उत्पन्न करता है। ऐसी स्थिति में यह भूमि संसार से विरक्त व्यक्तियों को श्रेष्ठ दिगम्बर मुद्रा धारण करने की सहज प्रेरणा देती है।
- दिगम्बर दीक्षा, पृष्ठ ११२
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