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________________ २३३ चारित्रचक्रवर्ती उपवास आदि का क्रम पूर्ववत् ही रहता था। जहाँ जल के बिना क्षण भर चैन नहीं पड़ती है, वहाँ आचार्य महाराज कई दिन तक अन्न-जल आदि का त्याग करते थे, और फिर धूप में पैदल विहार भी करते जाते थे। यह तपश्चर्या अन्य जीवों को चकित कर देती थी। दिन जाते देर नहीं लगती। अब वर्षा ऋतु निकट आ रही थी इससे संघ ने ललितपुर की भूमि को अपने चातुर्मास द्वारा पवित्र करने का निश्चय किया। ललितपुर चातुर्मास व पाषाण को द्रवित करने वाली तपस्या यहाँ रेलवे स्टेशन के समीप क्षेत्रपाल नाम का सुन्दर स्थान है। वहाँ मनोज्ञ जिनमंदिर है। उद्यान भी है। आचार्यश्री ने इस स्थान को चातुर्मास के लिए सर्व दृष्टि से उपयुक्त समझा। ललितपुर में जैनियों की संख्या भी अच्छी है। इस चातुर्मास में धार्मिक मेलासा लग गया था। सेन्ट्रल रेलवे की मेनलाइन पर यह स्थान होने से सभी प्रांत के श्रावकों के आने की सुविधा थी। कटनी चातुर्मास की अपेक्षा यहाँ आचार्य महाराज की तपश्चर्या पाषाण को भी द्रवित करने वाली थी। अद्भुत तपस्या कटनी चातुर्मास के समय महाराज ने बहुत उपवास किये थे। यहां लगभग छह माह प्रमाण काल में लगभग चार माह से अधिक का समय उपवासों में बीता था। उन्होंने दशलक्षण पर्व में दस दिन को आहार छोड़ दिया था। भारतवर्ष में लम्बे उपवास करने वाले व्यक्तियों में गाँधी का विशिष्ट स्थान रहा है, किन्तु उनके उपवासों में दिगम्बर मुनियों सदृश चतुर्विध आहार का त्याग नहीं रहता था। सन् १९४२ में गांधीजी ने लार्ड लिनलिथगो वायसराय के समय पर जो १० फरवरी को इक्कीस दिन का अनशन किया था, उस समय गांधीजी पहले केवल जल लिया करते थे, किन्तु जब तेरहवें दिन उनका शरीर ठंडा पड़ चला, नाड़ी क्षीण हो चली, तब गांधीजी ने पानी के साथ ताजी मौसंबी का रस लिया था। दो मार्च को गांधी जी ने ६ औंस प्रमाण नारंगी का रस जल में मिलाकर लिया था। इसके आगे भी वे नारंगी का रस लेते रहे थे। गांधीजी ने वायसराय लिनलिथगो को अपने पत्र में लिखा था 'सामान्यतया अपने उपवासों में जल के साथ थोड़ा नमक मैं लेता रहा हूं, किन्तु अब मेरी प्रकृति जल को सहन नहीं कर सकती है, इससे उसके साथ थोड़ा सा संतरे का रस (Juice of citress fruit) लेने का विचार है, ताकि पानी पिया जा सके।' ललितपुर आने पर आचार्य महाराज ने सिंहनिःक्रीड़ित तप किया था। यह बड़ा आचार्य श्री के श्रुत काअभीक्ष्ण अभ्यास रहने से अंतःकरण, विचार, बुद्धि अत्यन्त परिष्कृत हो गयी थी। (पृष्ठ २१२, प्रभावना) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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