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________________ प्रभावना २१० कर सकता है। भोले लोग इन संतों के पास आते हैं। उन्हें बातें बनाना नहीं आता है। इनका विशुद्ध जीवन देखकर वे सहर्ष कुछ व्रत ले लेते हैं। श्रद्धापूर्वक दृढ़ता के साथ पालन करते हैं और आगामी उज्ज्वल जीवन के योग्य अपार पुण्य का संचय करते हैं। इन संतों की महिमा यथार्थ में भव्य जीव ही जानते हैं। __ आचार्य महाराज की आत्मा तपश्चर्या के द्वारा अत्यन्त पवित्र हो चुकी थी, इससे उनकी आत्मा भविष्य के सम्बन्ध में महत्व की बातें प्रायः पहले से ही बता देती रही है। लोग पहले उस कथन को सामान्य वचन समझते थे, किन्तु सत्य प्रमाणित होते देख महाराज के पूर्वकथित शब्द स्मरण में आ जाते थे। भविष्य की बातों का पूर्वदर्शन __ सन् १९४७ में महाराज ने वर्षायोग सोलापुर में व्यतीत किया था। मैं भी गुरुदेव की सेवा में व्रतों में पहुंचा था। एक दिन व्रतों के समय पूज्यश्री के मुख से निकला “ये रजाकार लोग हैदराबाद रियासत में बड़ा पाप व अनर्थ कर रहे हैं। इनका अत्याचार सीमा को लांघ रहा है। इनको अब खतम होने में तीन दिन से अधिक समय नहीं लगेगा।" महाराज के मुख से ये शब्द सुने थे। उसके दो-चार रोज बाद ही सरदार वल्लभभाई पटेल के पथ-प्रदर्शन के अनुसार हैदराबाद पर भारत सरकार ने पुलिस कार्यवाही (lice Action) रूप आक्रमण कर दिया और तीन दिन के भीतर ही हैदराबाद ने भारत सरकार के समक्ष घुटने टेक दिये। इसके अनंतर मैंने आचार्य महाराज से कहा, “महाराज ! उस दिन आपके मुख से हैदराबाद का जो भविष्य निकला था, यह पूर्णतया ठीक निकला। यह बताइये, इसका कैसे पता चल गया, आप तो राजनीति आदि की खबरों से अत्यन्त दूर रहते हैं।" महाराज ने कहा, “हमारा जैसा हृदय बोला, वैसा हमने कहा था।" यथार्थ में जैनधर्म में ज्ञान के विकास के लिए मोहनीयकर्म के क्षय को प्रथम स्थान दिया है, वह महत्व की बात है। मोह शत्रु को जीतने से आत्मा में सहज विशुद्धता उत्पन्न होकर अद्भुत ज्ञान-ज्योति व्यक्त होती है, जैसे मेघ का आवरण दूर होने पर सूर्य का प्रकाश प्रगट हो जाया करता है। मोहरहित अल्पज्ञान भी सर्वज्ञता को प्राप्त करा देता है। कुंदकुंद स्वामी ने मूलाचार में कहा है कि जहाँ वैराग्य भावयुक्त वीरपुरुष थोड़ा भी ज्ञान पाकर सिद्धपद प्राप्त करते हैं, वहीं सर्वशास्त्र पारंगत वैराग्य के बिना मोक्ष नहीं पाते। वैराग्य का अर्थ है राग तथा द्वेष का त्याग करना। राग और द्वेष चारित्रमोह के भेद हैं। अतः वैराग्य का अर्थ होगा चारित्र को अंगीकार करना। चारित्ररहित के वैराग्य कैसे होगा ? चारित्र-शून्य को रागरहित जानना भिक्षुक को श्रीमन्त कहना सदृश बात है। विषय-भोग त्यागे बिना चारित्र नहीं होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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