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चारित्र चक्रवर्ती अनिष्ट का संकेत
एक बार सन् १९४८ की जनवरी में आचार्य महाराज ने विहार करते हुए शिष्य मंडली से कहा था, "हमारा हृदय कहता है कि देश में कोई भयंकर अनिष्ट शीघ्र ही होगा।" महाराज के इस कथन के दो-चार रोज बाद गोडसे ने गांधीजी की निर्मम हत्या की थी। उस समय सब बोले, “महाराज के ज्ञान में भावी घटनाओं की विशेष सूचना प्रायः स्वतः आ जाया करती है।"
संघ के निमित्त से गोसलपुर समाज को अपार आनन्द आया। जीवन में ऐसे पवित्र और मांगलिक अवसर कब-कब आया करते हैं ? अतः वहाँ श्रीजी को विमान पर विराजमान कर जल-विहार उत्सव हुआ। पनागर
यहाँ मुनिराज का केशलोंच भी हुआ था। यहाँ के पश्चात् संघ १६ दिसम्बर को पनागर पहुंचा। वहाँ जैनियों के ५० घर हैं। शांतिनाथ भगवान् की ऊंची और मनोज्ञमूर्ति है। पहले यहाँ भट्टारक की गद्दी रही है। १७ दिसम्बर को आचार्य शांतिसागर महाराज ने केशलोंच किये। केशों का शरीर से अलग करना कलंक मोचन सरीखा कार्य है। यह अत्यन्त तुच्छ काम है, किन्तु यही तुच्छ कार्य तपस्वियों की तपस्या का अंग बन जाता है, और वे मशीन आदि के बिना हाथ से ही उखाड़े जाते हैं, तो दर्शकों की आत्माओं को भी प्रभावित करते हैं और सभी लोग सोचने लगते हैं कि सच्चे साधु महात्मा तो ये लोग हैं, गाँजा-चरस पीने वाले व्यर्थ में साधु का नाम लगाकर उस पद को दूषित करते हैं। ऐसे व्यसनों में लिप्त साधुओं से तो सदाचारी गृहस्थ लोग अच्छे हैं। जब तक इन्द्रिय जय नही होता है, तब तक साधु महाराज' प्रायः “स्वादु महाराज” कहे जाने के पात्र हैं। आचार्य महाराज का केशलोंच बड़ा अद्भुत होता था। उसमें अधिक समय नहीं लगता था। उसे देखकर ऐसा लगता था कि यह उनका पूर्व जन्म का अभ्यास है। तिनकों के तोड़ने के समान उनका केशों का लोंच प्रतीत होता था। केशलोंच कितनी साधना और मनोनिग्रह का काम है, इसके परीक्षण के लिए अपने सिर के बालों को खेंचकर अनुमान हो सकता है। केशलोंच
बारामती चातुर्मास में आचार्य शांतिसागर महाराज का केशलोंच देखकर मैंने पूछा था-"महाराज ! केशलोंच में आपको कष्ट तो होता होगा?"
महाराज बोले-“लगभग ४० वर्ष हो चले, तब से यह कार्य कर रहे हैं, अब कुछ नहीं मालूम पड़ता है।" यथार्थ में आचार्यश्री का इन्द्रियदमन अपूर्व है।
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