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चारित्र चक्रवर्ती नवीन भी थे। मिनिस्टर जैन से चर्चा के प्रसंग में मैंने कहा, “यहाँ से पास ही अपने
आचार्य शान्तिसागर महाराज हैं।" श्री बालकृष्ण शर्मा बोलने लगे, “जैन लोग सोचते हैं कि आचार्य शांतिसागर महाराज हमारे हैं। किन्तु यह बात ठीक नहीं है। आचार्य महाराज सबके हैं। उनके चरणों पर जितना जैनों का अधिकार है, उतना ही हमारा भी अधिकार है। वे तो विश्व की विभूति हैं।" विश्वसंस्कृति के सूत्रधार
इन वाक्यों के भीतर गहरी सच्चाई छिपी है कि संसार में जितनी वेषभूषायें है, वे मनुष्य-मनुष्य में भेद पैदा करती हैं अर्थात् परिग्रह का आवरण ही संसार का जाल फैलाता है। जब इन महान् मुनिराज ने दिगम्बर मुद्रा धारण कर ली, तब ये सूर्य और चन्द्रमा के समान प्राकृतिक रूप में आ गये। सूर्य और चन्द्रमा को कौन नहीं अपनाता है, अपना नहीं मानता है, उनसे अपना कल्याण-साधन नहीं करता है ? इसी प्रकार ये आध्यात्मिक विभूतियाँ प्रसुप्त मोही मानव को जगाती हुई कल्याण के मंदिर में प्रवेश के लिए प्रेरणा प्रदान करती हैं। सच्ची संस्कृति को कूटनीति के मायाजाल से निकालकर देखा जाय, तो ज्ञात होगा कि इन्हीं संतों के चरणों में विश्वसंस्कृति का मंगलमय मार्ग छुपा हुआ है। दुनिया के कोने-कोने में सर्वजीवभक्षी हिंसक लोग एकत्रित होकर सांस्कृतिक समुत्थान की कर्णप्रिय बातें करते हैं। उसे सुनकर नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज करने चली है' यह सूक्ति याद आती है। भला वहाँ क्या संस्कृति की ज्योति होगी, जहाँ मांसभक्षण, मदिरापान तथा जीववध सदृश पापकृत्यों में जरा भी दोष नहीं दिखता है ? वहाँ तो संस्कृति का शव भी नहीं है। वह तो विशुद्ध पाखंड है। सर्वोदय का पथ इन्हीं संतों के जीवन में है, उपदेश में है, प्रवृत्ति में है। अहंकार को छोड़कर सच्चे कल्याण के प्रेमियों को इनसे प्रकाश प्राप्त करना चाहिए। ___गोसलपुर में विमानोत्सव हुआ। मुनि नेमिसागर महाराज का केशलोंच भी हुआ। बहुसंख्यक ग्रामीणों ने गुरुदर्शन द्वारा पुण्य का बंध किया था। जीवन द्वारा सच्ची प्रभावना ___ बड़े-बड़े नगरों में लाखों आदमियों की भीड़ इकट्ठी होती है। उसे देख कर बड़ी प्रभावना की कल्पना होती है, किन्तु परिग्रह के जाल में जकड़े हुए लोगों में एक कान से सुनने के बाद दूसरे कान से उड़ा देने की अपरिहार्य आदत होती है। अतः वहाँ की प्रभावना प्रायः ऊसर भूमि में वर्षा सदृश होती है। ग्रामीणों में दिये गये उपदेश का ऐसा ही असर होता है, जैसे खेत के भीतर पानी के बरसने का होता है। दिगम्बर मुनि की पैदल यात्रा के द्वारा इतने जीवों का कल्याण होता था, जिसका घर बैठे आदमी अनुमान नहीं
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