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________________ प्रभावना २०६ कर सकते हैं, तो अपने में बड़प्पन का अंहकार करने वालों को और चमारों से अपने को बड़े मानने वालों को सोचना चाहिए कि इस विषय में वे चमारों से आगे रहना चाहते हैं या पीछे ? यथार्थ बात यह है कि जो आत्मा अहिंसा से भूषित है, वह महान् है, जो हिंसा में निमग्न है, वह कदापि उच्च अथवा महान् नहीं मानी जा सकती है। गो की महत्ता को मांस - जीवी गिद्ध कहीं प्राप्त कर सकता है ? पिपरौद के रास्ते में सर्पराज का आतंक संघ ने बिलहरी से पिपरौद ग्राम की ओर प्रस्थान किया, तो एक यात्री ने कहा"महाराज, रास्ते में एक भीषण सर्प है, वह जाने वालों का पीछा करता है, अतः वह रास्ता खरतनाक है।" सब लोग चिन्ता में पड़ गए। लोग यही चाहते थे कि महाराज दूसरे रास्ते से चलने की आज्ञा दें। क्रुद्ध सर्प के रास्ते पर चलकर प्राणों के साथ खिलवाड़ करने से लोग डरते थे, किन्तु उन्होंने ऐसे महान् पुरुष के चरण पकड़े थे, जो जीवन भर निर्भीक रहे हैं। अनेकों बार घंटों सर्पराज जिनके शरीर पर काफी उपद्रव करके परीक्षा ले चुके, किन्तु उन शांति सागर में अशांति का लेश न पाया गया। आचार्यश्री सामान्य श्रेणी के व्यक्ति नहीं थे । आचार्य महाराज ने कहा- "घबड़ाओ मत।' और वे तो उसी रास्ते पर बढ़ते चले । महाराज के पुण्यप्रताप से सर्पराज बाँस-बिड़े में सो रहा था, इससे निष्कंटक रास्ता कट गया। जिनेन्द्र भगवान् के वचनों पर श्रद्धा रखने वालों का संकट ऐसे ही टल जाता है। मानतुंग आचार्य ने भी लिखा है : हे भगवन् ! जिस पुरुष के हृदय में आपके नामरूपी नाग-दमनी औषधि विद्यमान है, वह शंकारहित हो रक्त नेत्र वाले, समद कोयल के कंठ समान श्याम वर्ण वाला, क्रोधयुक्त, फण उठाकर आते हुए सर्पराज को अपने पैरों से लाँघ जाता है। महाराज का प्रभाव बारामती के गुरुभक्त शिरोमणि सेठ चंदूलाल सर्राफ से हमने पूछा था - 'आप महाराज की सेवा में प्रायः रहते हैं। क्या विशेषता उनके बारे में देखने में आई ? उन्होंने कहा था- 'महाराज के साथ में कभी भी कष्ट नहीं हुआ। कभी कोई संकट नहीं आया। हम भयंकर से भयंकर जंगल में पड़े रहे, कभी भी चोरी नहीं हुई। कभी बीमारी की विपत्ति नहीं भोगने में आई । ' वे कहने लगे- 'कदाचित् संकट का समय आया और हम लोगों ने आचार्य महाराज का पुण्य स्मरण किया, तो उनका नाम लेते ही संकट दूर हुआ है। ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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