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________________ २०७ चारित्र चक्रवर्ती राहुरी में जलप्रलय से रक्षा उन्होंने एक घटना सुनाई। और भी अनेक लोगों ने उसका समर्थन किया। महाराष्ट्र राज्य के प्रसिद्ध शहर अहमदनगर की तरफ महाराज का विहार हो रहा था। रास्ते में राहुरी स्टेशन मिलता है। संध्या हो चली थी। उस समय हम पास के ग्राम में रहना चाहते थे, किन्तु महाराज ने हम लोगों की प्रार्थना की परवाह नहीं की और वे दूर तक आगे बढ़ गये। लाचार होकर हमको भी उनकी सेवार्थ वहाँ पहुंचना पड़ा। कुछ समय के पश्चात् उस ग्राम के पास ऐसी भीषण वर्षा हुई कि वहाँ कोई घर न बचा। पूर में सब बह गये। आत्मवाणी इस सम्बन्ध में मैंने महाराज से पूछा था, “महाराज! ऐसे प्रसंग पर आप क्यों उस गांव के आगे बढ़ गये ? क्या आपको वर्षा का ज्ञान हो गया था ?" महाराज ने कहा, “ऐसे अवसर पर हमारी आत्मा वहाँ रहने को नहीं बोलती थी। हमारी आत्मा जैसे बोलती है, वैसा हम करते हैं। किसी के कहने से कुछ नहीं करते है।" ऐसी पवित्र आत्मा का शरण लेने वाले को कहाँ विपत्ति होती है ? चरणों की सेवा से समृद्धि-लाभ शिखरजी में संघपति ने पंचकल्याणक महोत्सव में लाखों खर्च किये। संघ के साथ बहुत समय व्यतीत किया, इससे उनके पास की सम्पत्ति कम हो गई होगी, ऐसा कोई सोच सकता है, किन्तु यह भ्रम है, आचार्य शांतिसागर महाराज के चरण पकड़ने वालों का ऐसा विकास और अभ्युदय हुआ कि जिसे देखकर लोग चकित हो जाते हैं। दैवज्ञ का कथन एकबार एक उच्चकोटि के ज्योतिषशास्त्र के विद्वान् कोआचार्य महाराज की जन्मकुण्डली दिखाई थी। उसे देखकर उन्होंने कहा था, जिस व्यक्ति की यह कुण्डली है, उनके पास तिलतुषमात्र भी संपत्ति नहीं होनी चाहिए, किन्तु उसकी सेवा करने वाले लखपति, करोड़पति होने चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि इनकी शारीरिक शक्ति गजब की होनी चाहिए। बुद्धि बहुत तीव्र बताई थी और उन्हें महान् तत्त्वज्ञानी भी बताया था। ___ महाराज के चरणों का आश्रय लेने से विपत्ति नहीं आती, यह साथ के लोगों ने भी देख लिया। उनको संकटमुक्त होने का हर्ष तो था ही, साथ ही महाराज के प्रति उनकी आंतरिक श्रद्धा और भी बलवती हो गयी। आगे चलकर संघ ने पिपरौद ग्राम में रात्रि व्यतीत की। मध्याह्न की सामायिक के उपरांत संघ ने तिवरी की ओर प्रस्थान किया। यहाँ संघ दो दिन ठहरा। साथ में दो गाड़ी लेकर लाडन के सेठ बच्छराजजी भी सपरिवार गुरुसेवा में दत्तचित्त थे। सेठ बच्छराजजी www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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