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________________ २०५ चारित्र चक्रवर्ती विचार से लोगों के हृदय पर वज्राघात-सा होता था। कितनी शांति, सुख, संतोषपूर्वक समय व्यतीत हुआ, इसकी घर-घर में चर्चा होती थी। विहार __ अगहन कृष्णा एकम का दिन आया। आहार के उपरांत महाराज ने सामायिक की ओर जबलपुर की ओर विहार किया। उस समय आचार्य महाराज में कटनी के प्रति रंचमात्र भी मोह का दर्शन नहीं होता था। उनकी मुद्रा पर वैराग्य का ही तेज अंकित था। हजारों व्यक्ति, जिनमें बहुसंख्यक अजैन भी थे, बहुत दूर तक महाराज को पहुंचाने गये। महाराज अब पुनः कटनी लौटने वाले तोथे नहीं, क्या ऐसा सौभाग्य पुनः मिल सकता है ? कटनी की समाज के हृदय पर महाराज का आज भी शासन विद्यमान है। जब कभी वहाँ के श्रावकों से समक्ष चर्चा आ जाती है, तो वे आनन्दमग्न होकर उन पुण्य दिवसों का स्मरण कर लेते हैं। विशुद्ध जीवन के बिना ऐसा स्थायी पवित्र प्रभाव कैसे हो सकता है ? महाराज को आहारदान का सौभाग्य मिल जाय, इससे कटनी से श्रावकों की मंडली संघ के साथ रवाना हो गई। बिलहरी में चमारों द्वारा मांसाहार त्याग आचार्यश्री दूसरे दिन बिलहरी ग्राम पहुंचे। वहाँ संघ का दो दिन वास्तव्य रहा। आसपास महाराज के श्रेष्ठ आध्यात्मिक जीवन की प्रसिद्धि हो चुकी थी। अतः उस ग्राम में सरकारी अधिकारियों ने और जनता ने गुरुदेव के निमित्त से बहुत लाभ लिया। क्या कभी कोई सोच सकता है कि चमार लोग मांसाहार छोड़ सकेंगे? आज तो बड़ेबड़े उच्च वंशवाले मांसाहार तथा अंडे खाने की ओर बढ़ रहे हैं, तब आचार्यश्री के उपदेश से चमारों का मांसभक्षण त्याग करना बहुत बड़ी बात है। सुसंस्कृत और समुन्नत आत्मा का जीवन पर अद्भुत असर पड़ता है और जिसकी स्वप्न में भी आशा नहीं की जा सकती, वह बात सरलतापूर्वक प्रत्यक्षगोचर हो जाती है। आज तो अहिंसा के प्रसाद से जन्म धारण करने वाला भारतीय शासन मांसाहार प्रचार को अपना विशेष कर्त्तव्य मान बैठा है।' वह देखे कि चर्मकार तक मांस का त्याग १. भारत सरकार की Meat Marketing Report, १९५५ के पृष्ठ १६६ में मांस की महिमा बताते हुए, पृ. १६७ में उसके प्रचार के लिए सिफारिश इन शब्दों में की है, "It is therefore recommended that extensive propaganda may be carrid out to educate the peopls as regards high nutritive & protective value of meat & on the adversability of its increased Consumption in their daily diet." इससे ऐसा लगता है कि शासन कसाइयों की वकालत कर रहा है। जब तकशासन अपने कसाई सदृश हृदय को बदल कर मानवता को न अपनायेगा, तब तक प्रजा सर्वदा दुःखी ही रहेगी। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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