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तीर्थाटन
१८६ अवर्णनीय धर्म प्रभावना हुई। यह सब आचार्य शांतिसागर महाराज की अप्रतिम भक्ति, प्रगाढ़ जिन धर्म पर श्रद्धा तथा परम विशुद्ध चारित्र के द्वारा सानंद संपन्न हो गया। अब तो वह महोत्सव पवित्र स्मृति की वस्तु है। सभी प्रांत के श्रावकों ने आचार्य महाराज से अपने विहार द्वारा अन्य प्रांतों को पवित्र करके जिन शासन की प्रभावना करने की प्रार्थना की। लोकत्याग तथा दि. जैन धर्म की प्रभावना का विचार कर आचार्य महाराज ने अब तीर्थ वंदना के साथ साथ सर्वत्र धर्म प्रभावनार्थ विहार करने का पवित्र निश्चय किया। शिखरजी से प्रस्थान __ आष्टाह्निक महापर्व सम्मेदाचल के सान्निध्य में व्यतीत करने के उपरांत चैत्र वदी एकम को संघ ने शिखरजी से प्रस्थान कर दिया। इतने दिनों से शिखरजी के दर्शन की उमंग थी, वह पूरी हो गई, इससे सिद्ध उद्देश्य हो अन्य तीर्थों के दर्शनार्थ रवाना होकर महाराज वड़ाका नदी पर दो दिन ठहर कर तीसरे दिन गिरडीह पहुंचे। संघ वहाँ तीन दिन ठहरकर वासुपूज्य भगवान के निर्वाण स्थान चंपापुर के लिए रवाना हुआ। रास्ते में गावाद में क्षत्रियों का महासम्मेलन था। उस समय क्षत्रिय समाज ने आचार्य महाराज का बड़े आदर भाव से दर्शन किया और अमूल्य आशीर्वाद तथा कल्याणप्रद उपदेश प्राप्त किया।
चैत्र वदी त्रयोदशी को संघ मंदारगिरि के निकट पहुंचा। संघ यहां तीन दिन ठहरा, पश्चात् विहार कर चैत्र सुदी तीज को भागलपुर आया। वासुपूज्य भगवान की निर्वाण भूमि
वहां नाथनगर के पास चंपापुर में वासुपूज्य भगवान के चरण चिह्न हैं, प्रतिमा जी भी बड़ी भव्य है। उनके दर्शन कर सबने बड़ी शांति प्राप्त की । यहाँ से वासुपूज्य भगवान ने निर्वाण प्राप्त किया था। पंचबालयति तीर्थंकरों में वासुपूज्य भगवान का सर्व प्रथम नाम स्मरण किया जाता है। बालब्रह्मचारी तीर्थकरों में वासुपूज्य भगवान के विषय में कवि कहते हैं -
वासुपूज्य वसुपूज तनुज पद वासव सेवत आई।
बालब्रह्मचारी लख तिनको शिवतिय सन्मुख धाई॥ वहां से चलता हुआ संघ राजगृही आया। भगवान महावीर प्रभु के समवशरण में
१. निर्वाणकांड में कहा है “चंपाए वासुपूज्य जिणणाहो'- चम्पापुर से वासुपूज्य जिनेश्वर ने मोक्ष पाया।
उत्तर पुराण में मंदारगिरिको निर्वाणभूमि कहा है । चंपापुरी महानगरी थी । मंदारगिरि उसका ही अंग रहा होगा । मंदारगिरी का वातावरण विशेष आकर्षक है । धर्मात्मा पुरुष दोनों जगह जाकर दो बार भगवान वासुपूज्य की आराधना द्वारा पुण्य प्राप्त करता है।
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