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________________ तीर्थाटन १८३ महाराज ने कहा, “जब संघ में कोई साधु का मरण हो जाता है, तब मुनि टोंटी आगे करके चलते है, उससे संघ के साधु के मरण का बोध हो जायगा। वह अनिष्ट घटना का संकेत है।" मैंने पूछा, “महाराज ! टोंटी सामने करके यदि चला जाय, तो और भी कोई दोष आता है ?" ___ महाराज ने कहा, “टोंटी सामने करके चलने से छोटे कीड़े टोंटी के छिद्र द्वारा भीतर घुस जावेंगे और भीतर के पानी में उनका मरण हो जायगा। टोंटी पीछे करके चलने में यह बात नहीं है।" इस उत्तर को सुनकर आचार्य महाराज की सूक्ष्म विचारपद्धति और तार्किक दृष्टि का पता चला कि वे कितनी बारीकी से वस्तु के स्वरूप के विषय में विचार करते हैं। उनका ऐसा समाधान होता था कि उससे वह अंतःकरण को पूर्ण संतोष प्राप्त होता था। महाराज की सिद्ध भक्ति अभी सन् १९५१ के वारामती चातुर्मास में आश्वनि मास में महाराज के दर्शनार्थ देश विदेश में अपने वाणिज्य विषयक चातुर्य के लिए सुविख्यात एवं राष्ट्र में अपूर्व गौरव प्राप्त सेठ बालचंद हीराचंद बंबई वाले आए। इतने महान् व्यक्ति को कर्मचक्र के विशेष उदय युक्त देखकर आश्चर्य होता था कि उनके पास करोड़ों रुपया है और आज उस धन को वे सर्व शक्तिमान नहीं कह सकते हैं ? वाशिंगटन ने जिस अमेरिकन डॉलर की “सर्व शक्तिमान व विश्व-पूजा का महान पात्र"१ पद के द्वारा महिमा कही थी, वह धन उनके तनिक भी काम में नहीं आ रहा था। वे बोल नहीं सकते थे। लकवे के कारण हाथ पैर सब अकड़ गए थे। रोटी भी हाथ से नहीं खा सकते थे। साता वेदनीय का उदय होने पर महान सुखोपभोग होता था, किन्तु अब तीव्र असाता के उदयवश ऐसी स्थिति हो गई, जो देखने वालों के मन में भी व्यथा उत्पन्न करती थी। अध्यात्म शास्त्री साता, असाता को समान कहते हैं, किन्तु विपाक की दृष्टि से उनमें बड़ा अंतर अनुभव में आता है। उस समय मैंने कहा, “सेठ जी! आपका बड़ा भाग्य है जो आप श्रेष्ठ महात्मा का दर्शन कर रहे हैं। आचार्यश्री के दर्शनार्थ आए यह अच्छा किया। आपने करोड़ों रुपये कमाए, देश विदेश का पर्यटन किया। जहाज, हवाई जहाज, मोटर के कारखाने खोले, बड़े-बड़े काम किए, खूब धन कमाया, किन्तु ये सब आत्मा के लिए कुछ भी कल्याण साधक न हुए। समस्त उद्योग करते हुए भी धन वैभव आपके शरीर की व्यथा को दूर नहीं कर सका, अतः आप महाराज को प्रणाम कीजिए और णमो अरिहंताणं' आदि 1. The Almighty Dollar, that great object of universal devotion. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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