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________________ १८२ चारित्र चक्रवर्ती अतःकरण के समक्ष तीर्थंकरों के पावन चरण अवश्य आते थे। महाराज की स्मरण शक्ति भी तो सामान्य नहीं रही है। उनकी स्मृति वंदना के संस्मरण सुस्पष्ट जागृति कर लेती रही है, तब उस समय की सुस्पष्टता का तो क्या कहना है? उतरते समय एक गंधर्व नाला मिलता है। ऊपर से नीचे आने में व्यवहार पथ का ही अवलंबन होता है, इस बात को वह एक निर्झर सूचित करता हुआ प्रतीत होता था। आगे मधुवन के समीप आने पर भील आदि जंगली लोगों का मधुर गीत सुनाई देता है। वे गा रहे थे - तुम तो भला विराजा जी। सांवरिया पारसनाथ शिखर पर भला विराजाजी॥ देस देस का जतरी आया पूजा भाव रचाया। आठ दरब लें पूजा कीनी मनवांछित फल पाया ॥ टेक ॥ नीचे आ जाने पर हृदय पुनः उस पुण्यधाम को प्रणाम करना चाहता है, जहां चरण चिह्नों को प्रणाम करके वंदक नीचे आये हैं, अतः वह इन शब्दों द्वारा वंदना करता है - प्रथम कुंथुजिन धर्म सुमति अरु शांति जिनंदा । विमल सुपारस अजित पार्श्व मेटे भव फंदा। श्री नमि अरहजुमल्लि श्रेयांस सुविधि निधि कंदा । प्रभु महाराज और मुनिसुव्रत चंदा।। शीतलनाथ अनंत जिन सम्भव अभिनंदन जी। वीस टोंक पर वीस जिनेश्वर भाव सहित नित वंदन जी॥ मधुवन के जिन विम्बों की वंदना करके आज की तीर्थ वंदना पूर्ण हुई। इसके पश्चात् महाराज चर्या को निकले। भाग्यशाली दातार को आज आहार दान का श्रेष्ठ सौभाग्य मिला। उसने अपने को कृतार्थ माना सो स्वाभाविक है। दर्शकों को जब महान आनंद आता है, तब अतिथि सत्कार करने वाले दातार को क्यों न अपार हर्ष होगा? कारण, महाराज सदृश सर्व गुण संपन्न अतिथि का दर्शन आज दुर्लभ है। दक्षिण में निग्रंथ मुनि परम्पराअविच्छिन्न रूपसे चलीआरही है, इससे जैन क्रियाओं का सुव्यवस्थिति पालन होता चला आ रहा है। कई ऐसी क्रियाएं हैं, जिनको लिखना कठिन प्रतीत होता है और उनका प्रत्यक्ष प्रयोग देखकर समझना सरल कार्य होता है। सूक्ष्मचर्चा __एक दिन महाराज ने कहा, "कोई कोई मुनिराज कमण्डलु की टोंटी को सामने मुंह करके गमन करते हैं, यह अयोग्य है।" मैंने पूछा, “महाराज! इसका क्या कारण है, टोंटी आगे हो या पीछे हो। इसका क्या रहस्य है ?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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