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चारित्र चक्रवर्ती देवताओं के द्वारा पूजा प्राप्त की। प्रतीत होता है उत्तर भारत में यवनों के शासन काल में अत्याचारवश बहुत क्रियाएं लुप्त हो जाने से इस कर्तव्य कर्म में विमुखता हो गई। दशलक्षण प्राकृत पूजा में कहा है, 'संयम विन घड़िय मइक्क जाहु' संयम रहित एक क्षण न जाने दो। वह रत्न है। द्यानतरायजी के ये शब्द गंभीर तथा कल्याणकारी हैं
काय छहों प्रतिपाल पंचेन्द्रिय मन वश करो।
संयम रतन सम्हाल विषय चोर बहु फिरत हैं । संघ के द्वारा संयम रत्नराशि का सभी भव्यों को दान प्राप्त होता था। नरकायु बाँधने वाले महापापी संयम और संयमी के प्रति शत्रु भाव रखते हैं। रायपुर
संघ १८ जनवरी सन् १९२८ को रायपुर पहुंचा। यहां सुन्दर जुलूस निकालकर धर्म की प्रभावना की गई। यहां अनन्तकीर्ति मुनि महाराज का केशलोच भी हुआ था। अंग्रेज अधिकारी का भ्रम निवारण
यहाँ के एक अंग्रेज अधिकारी की मेम ने दिगम्बर संघ को देखा, तो उसकी यूरोपियन पद्धति तथा रुचि को धक्का सा लगा। उसने तुरन्त अपने पति अंग्रेज साहब के समक्ष कुछ जाल फैलाया, जिससे संघ के बिहार में बाधा आए। अंग्रेज अधिकारी अनर्थ पर उतारू हो गया था, किन्तु कुछ जैन बंधुओं ने अफसर के पास जाकर मुनि के महान जीवन पर प्रकाश डाला और इनकी नग्नता का क्या अंतस्तत्व है यह समझाया तब उसकी दृष्टि बदली और उसने कोई विघ्न नहीं किया। महाराज के पुण्य प्रसाद से विघ्न का पहाड़ सत्प्रयत्न की फूंक मारने से उड़ गया। कुशलता से कार्य करने पर जो वस्तु प्रारंभ में अंगुली से टूट जाती है, वही चीज अयोग्य और अकुशल व्यक्तियों का आश्रय पाकर कुठार से भी अछेद्य हो जाती है। न्याय निर्माताओं को मुनियों से प्रकाश प्राप्त करना चाहिये
दिगंबरत्व के विषय में तर्क की तर्जनी उठाने वालों को यह जानना जरूरी है कि आत्मतल्लीनता तथा शरीर के प्रति निस्पृहभावना के कारण वस्त्रधारण की मनोवृत्ति ही नहीं रहती है। कहते हैं कि जब आर्कमिडीज ने विशिष्ट गुरुत्व (Specific Gravity) सिद्धांत को खोजा, तब उसे इतना असीम आनन्द हुआ था कि वह स्नानागर से नग्न ही निकल पड़ा और बाहर कहता रहा कि मुझे मेरी वस्तु मिल गयी। इस वैज्ञानिक जगत में प्रख्यात उदाहरण से यह बात स्पष्ट होती है, कि जब साधारण लौकिक पदार्थ की खोज के द्वारा हर्षित मानव अपने शरीर की सुध बुध भूल सकता है, तब साक्षात् अमृत और आनन्द के भंडार रूप आत्मत्व की उपलब्धि होने पर उस व्यक्ति की शरीर के प्रति अत्यन्त उपेक्षा होना नैसर्गिक बात है। ऐसे आत्मज्ञ सत्पुरुष को शरीर की समाराधना
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