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तीर्थाटन
१६३ दिया। वहां से चलकर संघ १५ दिसम्बर को नांदेड़ पहुंचा। वहां स्वागत के जुलूस में जिलाधीश आदि अधिकारी भी सम्मिलित थे। स्टेट के घुड़सवार तथा पुलिस सर्व प्रकार की सुव्यवस्था करते जाते थे। विदर्भ प्रांत में प्रवेश
श्री चन्द्रसागरजी ने, जो कुछ समय के लिये नांदगांव चले गये थे, लगभग दो सौ श्रावकों सहित नांदेड़ में आकर संघको वर्धमान बनाया। एक दिन वहां रहकर संघने १७ दिसम्बर को प्रस्थान किया, यहां तक ही निजाम की सीमा थी। अतः स्टेट के कर्मचारियों
और अधिकारियों ने सद्भावना पूर्वक आचार्य महाराज को प्रणाम किया और वापिस लौट आये। यह आचार्यश्री का आत्मबल था जिससे निजाम स्टेट में से विहार करते हुए तनिक भी गड़बड़ी नहीं हुई, किन्तु वीतराग गुरुओं का गौरव बढ़ा। __ अब संघ स्टेट के बाहर उमरखेड़ में ता.२० दिसम्बर को पहुंच गया। इसके पश्चात् ता.२१ को संघ पुसद के लिए रवाना हुआ। कारंजा की धार्मिक मंडली ने पं. देवकीनन्दन जी व्याख्यानवाचस्पति के नेतृत्व में पूज्यश्री से कारंजा होकर विहार करने की अनुनय विनय की। किन्तु वह रास्ता चक्कर का पड़ता था, इससे उनकी प्रार्थना अस्वीकृत हुई। पूसद में आसपास की बहुत जैन जनता ने आकर गुरुदर्शन का लाभ लिया। इसके पश्चात् ता. २३ दिसम्बर को संघ डिगरस आया। दूसरे दिन दाखा पहुंचा। वहां लगभग दो हजार श्रावकों का समुदाय एकत्रित हो गया था। आचार्यश्री का उपदेश सुनकर भव्यात्माओं को अवर्णनीय आनन्द मिला था। उनका एक एक शब्द बड़े प्रेम, बड़ी भक्ति और अतिशय श्रद्धापूर्वक सुना गया था। __ इसके पश्चात् संघ २६ दिसम्बर को यवतमाल पहुंचा। यहाँ खामगांव के श्रावकों ने सर्व संघ को भोजन कराया। यहां प्रद्युम्नसाव जी कारंजा वालों के यहां पूज्य आचार्यश्री का आहार हुआ। रात्रि के समय श्री जिनगौड़ा पाटील का मधुर कीर्तन हुआ। श्री पाटील गोविन्दरावजी ने संघ के लिए दूध, लकड़ी, का प्रबन्ध वर्धा पर्यन्त करके अपनी भक्ति तथा प्रेम भाव व्यक्त किया था। ता. २८ को संघ पुलगांव पहुंचा। बालू के बोरे डालकर कृत्रिम पुल बनाने की कुशलता तथा गुरुभक्ति श्री जमनालाल जी झांझरी ने प्रदर्शित की। यहाँ सुन्दर जुलूस निकाला गया था। संघ ३० दिसम्बर को वर्धा पहुंचा। आचार्य महाराज तथा अन्य त्यागियों का उपदेश हुआ। यहां से संघ रवाना होकर २ जनवरी सन् १६२८ को नागपुर के समीप पहुंच गया।
नागपुर और वर्धा के मध्य का मार्ग बहुत खराब था। उसे नागपुर जैन समाज ने तत्परतापूर्वक ठीक कराया। रत्नत्रय-मूर्ति आचार्य महाराज ने मुनित्रय सहित तीन जनवरी सन् १९२८ को नागपुर नगर में प्रवेश किया। जुलूस तीन मील के लगभग लम्बा था।
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