SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६४ चारित्र चक्रवर्ती उसमें छत्र, चमर, पालकी ध्वजा आदि सोने चांदी आदि की बहुमूल्य सामग्री थी, इससे उसकी शोभा बड़ी मनोरम थी। नागपुर नगर वासियों के सिवाय प्रांत भर के लोग जैन अजैन तथा अधिकारी वर्ग आचार्यश्री के दर्शन द्वारा अपने को कृतार्थ करने को खड़े थे। लोगों की धारणा है कि इतना सुन्दर विशाल भव्य और भक्ति युक्त जनता का जुलूस पुनः नागपुर में अब तक नहीं निकला। अपूर्व स्वागत अंजनी से चलकर गुरुदेव की सीताबर्डी में पूजा के अनन्तर जुलूस शांतिनगर की ओर चला। यह नवीन स्थान बाहर से आये हुए हजारों जैनियों के निवास के लिए बनाया गया था। आज भी वह स्थान आचार्यश्री के नाम से स्मारक रूप में विख्यात है। जुलूस की शोभा दर्शनीय थी। जहां देखो वहां भक्त जनता गुरुदेव पर सुवास युक्त पुष्पों की वर्षा कर रही थी। भीड़ इतनी अधिक थी कि जब महल के पास श्रीमंत भोंसले सरकार रग्धू जी महाराज ने जुलूस रोकने के लिए प्रार्थना करवायी तब प्रयत्न करने पर भी जनता के प्रवाह को रोकना अशक्य हो गया। शांतिनगर में निवास अवर्णनीय वैभव, शोभा तथा उल्लास के साथ जुलूस शांति नगर में पहुंचा। जहां लगभग आठ दस हजार जैन बंधुओं के निवास का प्रबंध था। प्रबंध व्यवस्था सुन्दर थी। बाहर के जैन बंधुओं के लिए हर प्रकार की सामग्री देने की व्यवस्था समाज ने की थी। तीन दिन पर्यन्त वह स्थल सजीव शांतिनगर दिखता था। वहाँ पर आर्तध्यान, रौद्रध्यान के बदले धर्म की धारा प्रवाहित हो रही थी। नागपुर राजधानी का स्थान है, किन्तु तीन दिन पर्यन्त लोगों का शांतिनगर का आकर्षण देख ऐसा लगता था कि वहाँ दूसरी राजधानी बन गई है। नागपुर के नागरिकों की भक्ति का कारण महाभारत में लिखा है कि नागनरेश श्रमणों के उपासक थे। नागकुलीन राजा तक्षक नग्न श्रमण हो गया था ।' दिगम्बर मुनियों के प्रति नागपुर प्रांतीय जनता की भक्ति ने पुरातन कथन की प्रामाणिकता प्रतिपादित कर दी थी। हमें तो ऐसा लगता है कि नाग युगल को सुर पदवी प्रदान करने वाले भगवान पार्श्वनाथ की निर्वाण भूमि के दर्शनार्थ जाने वाले इन महामुनि तथा उनके संघ के प्रति लोगों ने अपार भक्ति प्रगट की जो इस विचार की पुष्टि करता था कि यह नगर यथार्थ में नागपूर (फणिपुर) ही है। नागमंडल के नायक पद्मावती धरणेन्द्र ने सदा ही प्रभु पार्श्वनाथ की भक्ति करने वालों १. “सोऽपश्यत् नग्नं श्रमणं आगच्छन्तम्" - महाभारत आदिपर्व (हिन्दूधर्म समीक्षा पृ. १३५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy