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चारित्र चक्रवर्ती का स्वामी स्वेच्छापूर्वक आध्यात्मिक संत की सेवा में वांछनीय सामग्री समुपस्थित करता है, और सदा सेवार्थ तत्पर रहता है, ऐसी स्थिति में उन सत्पुरुषों के विषय में असत् आरोप की बात सोचना अभद्र कार्य है। मिरज नरेश द्वारा भक्ति
सांगली से संघ सानंद प्रस्थान कर मिरज पहुंचा। महाराज के शुभागमन का समाचार मिलने पर वहां के नरेश आचार्य श्री के दर्शनार्थ पधारे। महाराज का दर्शन कर संत समागम से उन्होंने अपने को धन्य समझा। यहां से चलकर संघ अथणी होता हुआ अतिशय क्षेत्र बाबानगर पहुंचा। पश्चात् संघ बीजापुर आया। यहाँ सार्वजनिक सभा में मुनि वीरसागर महाराज तथा ऐलक पायसागरजी का प्रभावशाली उपदेश हुआ। अक्कल कोट में शाही स्वागत तथा धर्म प्रभावना
वहां से चलकर संघ मगसिर सुदी ६ को अक्कल कोट पहुंचा। यहां सरकारी बाजे द्वारा संघ का भक्ति पूर्वक स्वागत किया गया। दो बजे दिन को नेमिसागर मुनिराज तथा ऐलक नेमिसागर जी का केशलोंच हुआ। उस समय राज्य के उच्च अधिकारी महोदय ने कचहरी की छुट्टी कर दी जिससे राजकर्मचारी भी केशलोच को देख सके। संघ के दर्शनार्थ बहुत लोग आए थे। केशलोंच को देखकर जैन साधुओं की आत्म-निमग्नता, वीतरागता, निस्पृहता, अहिंसापरता का जनता पर गहरा प्रभाव हुआ। केशलोंच पर अनुभव पूर्ण प्रकाश
एक बार मैंने आचार्य महाराज से पूछा था-"महाराज! आप लोग केशों को उखाड़ते जाते हैं, मुख की मुद्रा में विकृति नहीं आती, मुख पर शांति का भाव पूर्णतया विराजमान रहता है, क्या आपको कष्ट नहीं होता?" __ महाराज ने कहा था-"हमें केश-लोंच करने में कष्ट नहीं मालूम पड़ता। जब शरीर में मोह नहीं रहता है, तब शरीर-पीड़ा होने पर भावों में संक्लेश नहीं होता है।" एक बात और है, निरन्तर वैराग्य भावना के कारण शरीर के प्रति मोह भाव दूर हो जाता है, अतः आत्मा से शरीर को भिन्न देखने वाले इन तपस्वियों को केशलोच आत्मविकास का कारण होता है। अन्य संप्रदाय वालों के अंतःकरण पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है, जिनधर्म की प्रभावना होती है। अहिंसा और अपरिग्रह भाव के रक्षणार्थ यह कार्य किया जाता है। यथार्थ में सुखदुःख का संवेदन मनोवृत्ति पर अधिक आश्रित रहता है। जब मन उच्च आदर्श की ओर लगा रहता है, तब जघन्य संकटों का भान तक नहीं होता है। इसे देखकर यह भी समझ में आता है, कि मुनिराज जिस प्रकार शरीर से दिगम्बर होते हैं, उसी प्रकार इनका मन भी वासनाओं के अम्बर से उन्मुक्त रहता है। जैनेश्वरी तपस्या के द्वारा धर्म प्रभावना के लाभ
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