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________________ १५७ तीर्थाटन को विस्मरण कर कोई-कोई व्यक्ति एकान्त में केशलोंच का समर्थन करते हैं। यह धारणा अयोग्य है। सार्वजनिक रूप देने से अन्य धर्मियों के चित्त में जैनधर्म की महिमा अंकित होती है और वे सच्चे साधुत्व का मूल्यांकन करने लगते हैं। उनमें पूज्य भावना जगती है। निजाम राज्य प्रवेश इसके पश्चात् संघ ने तत्कालीन निजाम राज्य में प्रवेश किया था जो आज स्वतंत्र भारत में विलीन हो गया है। इसके कुछ समय पूर्व आनंद के सेठ माणिकचन्द मोतीचन्द शाह तथा बालचन्द जी कोठारी (वकील), गुलवर्गा ने निजाम रियासत के धार्मिक विभाग के पास प्रार्थनापत्र ता. १ वह. १३३७ फ. (सन् १९२७ में) दिया, उस पर श्री दिगम्बर आचार्य महाराज के संघ को विहार के लिए स्वीकृति प्राप्त हो गई तथा मार्ग में संघ को कोई तकलीफ न हो इससे तत्कालीन पुलिस सुप्रिन्टेडेंट मौलवी मुहम्मद जलालुद्दीन ने दो पुलिस के सिपाहियों को दिगम्बर मुनि संघ के साथ-साथ रहने की विशेष आज्ञा तारीख ३ वहमन १३३७ फ. को दी थी। उसमें लिखा था "मुहम्मद जलालुद्दीन मोहतमिम कोतवाली जिला गुलवर्गा की ओर से मि. बालचन्द कोठारी बी.ए., एल.एल.बी. वकील, गुलवर्गा निवासी के नाम उत्तर निवेदन है कि आपके प्रार्थना पत्र पर अब्दुल करीमखां और आवाजीराव नामक दो जवान (सिपाही) आज ता. ३ वहमन सन् १३३७ फसली को एक माह के लिए रवाना किए जाते हैं, अतः समय अवधि की समाप्ति पर दो इन्फन्ददार सन् १३३७ फसली को वापिस कर दिए जावें।" जब संघ वागधरी पहुंचा तब वहां स्व. सेठ लीलाचन्द हेमचन्द की धार्मिक सेठानी राजूबाई ने सारे संघ तथा अन्य यात्रियों का बड़े आदर पूर्वक भोजन सत्कार किया। यहां आहार के उपरांत सामायिक हुई। तत्पश्चात् संघ का आलन्द की ओर विहार हुआ। आलंद में प्रभावना आलंद की जैन समाज ने उत्साह पूर्वक संघ का स्वागत किया। यहां संघ सेठ नानचन्द सूरचन्द के उद्यान में ठहरा था। पहले ऐसी कल्पना होती थी, कि कहीं कुछ संकीर्ण चित्तवाले अन्य संप्रदाय के लोग विघ्न उपस्थित करें, किन्तु महाराज शांतिसागर जी के तपोबल से ऐसा अद्भुत परिणमन हुआ कि ब्राह्मण, मुसलमान, लिंगायत, हिन्दु आदि सभी धर्म वाले भक्तिपूर्वक दर्शनार्थ आए और प्रसाद के रूप में पवित्र धर्मोपदेश तथा कल्याणकारी बातें साथ में लेते गए। आलंद में सरकारी अधिकारियों और सारी जनता ने दिगम्बर मुनियों के दर्शन से अपने जीवन को कृतार्थ किया। एक दिन कसाईखाना बंद किया गया यहां मगसिर सुदी १० को वीरसागर महाराज का केशलोच हुआ। उस समय जनता की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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