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________________ तीर्थाटन १४५ विहार हमारे जीवन में नहीं हुआ है, अब आपका संघ जाता है, इसको देखकर विद्वेषियों द्वारा विघ्न प्राप्त होगा, तब धर्म पर संकट आ जायेगा। अतः यह उचित होगा कि पहले आप किसी देवता को सिद्ध कर लेवें। इससे कोई भी बाधा नही होगी।" महाराज बोले-“मालूम होता है कि अब तक आपका मिथ्यात्व नहीं गया, जो हमें आगम की आज्ञा के विरुद्ध सलाह दे रहे हो।" पं. जी बोले-“महाराज! आपका भाव मेरे ध्यान में नहीं आया। स्पष्टीकरण की प्रार्थना है।" महाराजनेअपनेभावस्पष्ट करते हुए पूछा क्यामहाव्रती-अव्रती को नमस्कार करेगा?" पं. जी बोले -“नहीं महाराज, व्रती अव्रती को नमस्कार नहीं करेगा।" महाराज बोले-“विद्या या देवता सिद्ध करने के लिए नमस्कार करना आवश्यक है। देवता अव्रती होते हैं। तब क्या अव्रती को प्रणाम करना महाव्रती को दोषप्रद नहीं होगा?" पं.जी जब इस युक्तिवाद को सुनते ही चुप हो गए, तब महाराज ने कहा - "डरने की क्या बात है ? हमारा पंचपरमेष्ठी पर विश्वास है। उनके प्रसाद से विघ्न नहीं आयेगा और कदाचित् पाप कर्म के उदय से विपत्ति आ जाय, तो हम उसे सहन करने को तैयार हैं।" मंगलमय आचार्य परमेष्ठी के पथ में विघ्न कैसे टिकेंगे? महाराज का अदम्य उत्साह, महान् युक्तिवाद और प्रगाढ़ आत्मविश्वास देखकर उन पं. जी का ममत्ववश शंकाशील हृदय भी बदल गया और उनकी आत्मा भी कह उठी "प्रभो! अच्छा है, अपने विहार से उत्तर की भूमि में धर्म की धारा प्रवाहित कर भव्य जीवों को उपकृत कीजिए। जिनेन्द्र देव के प्रसाद से आपका मार्ग मंगलमय हो।" जिन आचार्य परमेष्ठी का स्मरण नाम पाठ विघ्न विनाशक होता है स्वयं उनके ही मार्ग में अमंगल मूर्ति विघ्न कैसे आवेंगे ? पवन के समक्ष पतंग, मच्छर नहीं आते हैं ? पवनपतंग विरोध का बोध कथा रूप एक काल्पनिक किंतु बोधप्रद आख्यान प्रसिद्ध है कहते हैं एक बार संसार की व्यवस्था में संलग्न विधाता का दरबार लगा हुआ था। उस समय मच्छर महाशय ने अपनी मुसीबत की कथा करुण शब्दों में सुनाई, कि पवन हमें सदा सताया करती है। हम किसी जीवित प्राणी के शरीर पर बैठकर अपना रस पान करते हैं, तो यह हमारे रंग में सदा भंग डाल दिया करती है। हमने इसका कभी भी कोई नुकसान नहीं किया है, किन्तु यह सदा हमारे साथ शत्रुता का व्यवहार करती है। विधाता ने वादीप्रतिवादियों को दूसरे दिन उपस्थित होने का आदेश दिया। मच्छर महाशय अपनी सफलता की कल्पना में मस्त हो मन ही मन गायन में मग्न हो बहुत पहले से ही न्यायालय में बैठे थे। इतने में समय हुआ, इनका पुकारा हुआ। मच्छर ने विधाता को प्रणाम किया। इतने में हवा का आगमन हुआ कि मच्छर राम ने खिसकना शुरू किया, और जब प्रचंड पवन अपनी बात बताने को और मच्छर के क्रूर कृत्यों पर प्रकाश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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