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________________ इस संस्करण के संदर्भ में इक्कीस Aaho प्रति जो कि दिगम्बर जैन मतावलंबियों के लिये महान उपलब्धि को दर्शाने वाले दस्तावेज के रूप में हैं, को भी जैसा का तैसा मुद्रित करवाते हुए, पंडित वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री, संपादक जैन बोधक द्वारा लिखित व १९५१ के जैन बोधक के धर्मध्वजांक विशेषांक अंक में प्रकाशित हिन्दी अनुवाद को भी मुद्रित करवाया है ।। बम्बई हायकोर्ट के निर्णय की नकल प्रति, विशिष्ट जानकारियों के साथ हमारे लिये अकलुज के श्री जवाहरलालजी फड़े ने उपलब्ध करवाई || यह तो दो ऐतिहासिक प्रश्न व तत् संबंधी बुधजनों के मार्गदर्शनानुसार की गई प्रतिक्रिया हुई, किंतु इस संस्करण में परिशिष्ट - २ भी है | इसमें आचार्यश्री के द्वारा दीक्षित महाज्ञानी तत्त्ववेत्ता महाराज कुंथुसागर जी द्वारा १६३६-३७ में रचित श्री शांतिसागर चारित्र (संस्कृत भाषा का छंदोबद्ध काव्य ग्रंथ) के कुछ अंशों को, जिनमें कि आचार्यश्री के गुरु आदि का उल्लेख है, प्रकाशित करवाया है (इसे हम पूर्व में कह चुके हैं) व साथ में परमपूज्य १०८ आचार्य विद्यासागरजी द्वारा लिखित श्री शांतिसागर स्तवन को भी मुद्रित करवाया है । इस स्तवन के तीन छंद (३५, ३६, ३७) प्रूफ रीडिंग की भूलवश मुद्रित होने से छूट गये हैं, जिसके लिये हम हृदय से क्षमा प्रार्थी हैं । वे छंद इस प्रकार हैं : छाई अतः दुख निशा ललना - जनों में, औ खिन्नता, मलिनता, भयता नरों में । आमोद हास सविलास विनोद सारे, हैं लुप्त मंगल सुवाद्य अभी सितारे ॥ ३५ ॥ सारी विशाल जनता महि में दुखी है, चिन्ता- सरोवर - निमज्जित आज भी है ॥ चर्चा अपार चलती दिन रैन ऐसी, आई भयानक परिस्थिति हाय ! कैसी ? ॥ ३६ ॥ फैली व्यथा मलिनता, जनता - मुखों में, हा ! हा! मची रूदन भी नर नारियों में । क्रीड़ा उमंग तज के वय बाल बाला, बैठी अभी वदन को करके सुकाला ॥ ३७ ॥ यह तो इस संस्करण के मूल ग्रंथ से संबंधित विषय हुआ ॥ अब समस्या इस संस्करण में प्रकाशित होने योग्य तस्वीरों के निर्णय की थी । पूर्व के संस्करण में प्रकाशित तस्वीरें जहाँ जो उपलब्ध हो गई, तदनुसार थीं । किसो निश्चित इतिहास को बोलती हुई सिलसिलेवार नहीं | बहुत चिंतन किया, बहुतों से सलाह ली, तस्वीरों की उपलब्धता को लेकर प्रयास किये, किन्तु कोई निष्कर्ष नहीं निकला, मानों अकाल सा हो गया हो ॥ अचानक एक दिन प्रातःकाल सहज ही कुछ मिल जाये इस दृष्टि से १६५५ में प्रकाशित जैन गजट के आचार्य शांतिसागर विशेषांक के पृष्ठ पलट ही रहा था कि इस विशेषांक के संपादक के अद्भुत/अद्वितीय कौशल पर ध्यान गया || चित्रों से संबंधित दो अद्वितीय संकलन उनमें थे, एक आचार्य श्री के समस्त चातुर्मासों की एक-एक फोटो, जो आचार्यश्री के चेहरे व कद काठी में आये परिवर्तन, किन्तु वृद्धिगत होते हुए तेज से न सिर्फ समन्वित थी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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