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________________ बावीस चारित्र चक्रवर्ती अपितु पाठकों को आचार्यश्री के एक-एक रूप से परिचय करवाती हुई भी थी । व दूसरा संकलन था आचार्य श्री की समाधि की साधना के छत्तीस दिनों का | इसो के साथ एक लेख और था और वह था सल्लेखना के छत्तीस दिनों की मिनट बुक का ।। इस मिनट बुक में १४ अगस्त से १८ सितम्बर तक कुंथलगिरी क्षेत्र पर जो कुछ भी महत्वपूर्ण हुआ अथवा जो महत्वपूर्ण व्यक्ति इस महामहोत्सव में सम्मिलित हुए, उसका संक्षिप्त किन्तु सिलसिलेवार ब्यौरा था || चिंतन में चलचित्र का अहसास दिलवाने वाली दोनों प्रकार की झाँकी - चित्रों में से एक को इस संस्करण में सम्मिलित करने हेतु मानस बनाया || निकटतम सहयोगियों को अपना चिंतन बतलाया, सभी को विचार अतिउत्तम लगा || अब चित्रों के संकलन के लिये पुरुर्षार्थ करना था || सर्वप्रथम कोशिश जैन गजट में की गई। उन्होंने कार्यालय में विषय से संबंधित कागजात ढूँढने के प्रयास किये, किंतु निराशा हाथ लगी | फिर विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात कर उन्होंने बतलाया कि वे सभी कागजात संपादक श्री अजित प्रसाद जी के पास ही रह गये थे व उनका देहावसान हो गया है । वे महावीर जी विराजते थे, अतः महावीरजी संपर्क किया गया । किन्तु निराशा हाथ लगी || पश्चात् पता चला कि वह सामग्री अजमेर चली गई थी । उसके पश्चात् पता चला कि वहाँ से समस्त सामग्री उज्जैन छोटेलालजी बरैया ले गये थे | तुरंत उज्जैन संपर्क किया गया, किंतु उज्जैन लगातार संपर्क नाये रखने पर भी अंत में हाथ निराशा ही लगी ॥ इस बीच अन्य-अन्य स्थानों पर भी संपर्क किये गये, किन्तु हाथ कुछ भी न लगा ।। इस बीच सोचा गया कि चातुर्मास के फोटो ना सही समाधि के ही छत्तीस दिनों के फोटो मिल जायें.. इस विचार के आते ही सर्वप्रथम जो नाम कौंधा वह कुंथलगिरि का था ।। एक विश्वस्त सज्जन ने बतलाया कि कुंथलगिरि के ट्रस्टियों ने तो वे तस्वीरें कब की उतारकर एक तरफ रख दीं । चित्त में दुःख अवश्य हुआ, किंतु विश्वास नहीं || इस बीच अकलूज बाबूभाई गाँधी से भेंट हुई। उन्होंने कहा कि वस्तुस्थिति मैं पता लगाकर आपको फोन करता हूँ ॥ उन्होंने बहुत तेजी से कार्य किया और सूचना दी कि सारी तो नहीं, किन्तु कुछ फोटो जो सुरक्षित थीं, उन्हें बड़ी करवाकर बहुत ही आदर पूर्ण ढंग से लगवाया गया है, यदि आप आ जाओ तो फोटोग्राफर को यहाँ से साथ ले जाकर तस्वीरें उतार लेवें । मैंने उनसे कहा कि प्रथम फोटोग्राफर से आप इस विषय में राय ले लेवें, फिर मैं सुविधाजनक संसाधन से पहुँचता हूँ | उन्होंने फोटोग्राफर से पूछा, फोटोग्राफर ने कहा कि लटकी हुई, शीशे चढ़ी फोटो से फोटो खिंचने का कोई मतलब नहीं है । यदि वे फ्रेम खोलकर खिंचने की आज्ञा दें, तब तो कुछ अर्थ निकलेगा । बाबूभाई ने वहीं से ट्रस्टियों को फोन किया ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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