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चारित्र चक्रवर्ती कुलोत्पन्न है। महान् व्यसनी है। इसे धर्म कर्म कुछ नहीं सुहाता है।" बलवान आकर्षण शक्ति .. मेरी निंदा महाराज के कानों में पहुँची, किन्तु उनके मुख मंडल पर पूर्ण शांति थी। नेत्रों में मेरे प्रति करुणा थी और बलवान आकर्षण शक्ति थी। महाराज ने लोगों को शांत किया उनके मुँह से ये शब्द निकले, “इसने आज हमारे दर्शन किये हैं, इसलिये इसे कुछ न कुछ लाभ अवश्य होगा।" मैं उनके मुखमंडल को ध्यान से टकटकी लगाकर देख रहा था। मुझे वे सचमुच में शांति के सागर दिखे। “मैंने भारतभर घूम-घूम कर बड़े-बड़े नामधारी साधु देखे थे। मुझे ऐसा लगा कि आज सचमुच में साधु के रूप में अपूर्व निधि मिली। मैंने उन्हें आध्यात्मिक जादूगर के रूप में देखा। मेरे मन में आंतरिक वैराग्य का बीज पहले ही से था। उनके सम्पर्क ने उसमें प्राण डाल दिये।" आध्यात्मिक अंध को नेत्र तुल्य
मैंने उनके जीवन का बड़ी सूक्ष्मता के साथ अध्ययन किया। उठते-बैठते, बोलतेचलते, उनकी सारी प्रवृत्तियों की बारीकी से जाँच की। उस समय मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि आज मुझ आध्यात्मिक अंधे को सचमुच में नेत्रों की उपलब्धि हो गई है। मेरा मन उनके चरण-कमलों की सुवास छोड़कर अन्यत्र निवास करना नहीं चाहता था। मैंने उनसे मद्य, मांस तथा मधु के सेवन के त्याग का नियम लिया। हिंसा, झूठ, चोरी, परस्त्रीसेवन व अतिलोभ का त्याग किया तथा जिनेन्द्र भगवान के दर्शन की प्रतिज्ञा की। एक माह में सप्तम प्रतिमा और दूसरे में ऐलक दीक्षा ली
पेपी आत्मा पर उनका इतना प्रभाव पड़ा कि मुझ जैसे स्वछंद तथा उद्दण्ड व्यक्तित्व ने आजोवन ब्रह्मचर्य का नियम ले लिया। अब मैं सप्तम प्रतिमाधारी ब्रह्मचारी बन गया। सभी लोग मेरा तीव्र विरोध करते थे और महाराज से कहते थे, “यह बड़ा व्यसनी तथा उद्दण्ड रहा है। यह फौजदार तक को मार देता है। यह अवगुणों का भण्डार है। इसमें एक ही विशेषता है कि जिस बात को पकड़ लेता है उसे पूरा किये बिना नहीं छोड़ता।" आचार्य महाराज महान् मनोवैज्ञानिक थे। उन्होंने अपनी दिव्यदृष्टि से मेरे प्रसुप्त सामर्थ्य को देख लिया, इसलिये मुझे व्रत देने में लोगों के विरोध की ओर ध्यान नहीं दिया। दूसरे माह में मैंने ऐलकदीक्षा मांगी और महाराज ने मुझे कृतार्थ कर दिया। उस समय मैंने केशलोचन जंगल में किये थे। मेरी स्थिरता देखकर महाराज को निश्चय हो गया कि यह व्रतों का पूर्णतया पालन कर सकेगा। उस समय चंद्रसागरजी ने मुझ पर आक्षेप किया
और महाराज से कहा कि, “इसे प्रतिमाओं का स्वरूप भी नहीं मालूम है, यह ऐलक पद का निर्वाह कैसे करेगा?"
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