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________________ दिगम्बर दीक्षा मुनि पायसागर जी का अद्भुत जीवन मुनि पायसागरजी के विषय में भी प्रकाश डालना उचित प्रतीत होता है, कारण उनकी चर्चा द्वारा आचार्यश्री की महत्ता सहज ही समझ में आ जाती है। मुनि पायसागर महाराज से स्तवनिधि क्षेत्र में आचार्य महाराज के विषय में चर्चा की, तब उन्होंने कहा था कि “मेरा जीवन उन संतराज के प्रसाद से अत्यंत प्रभावित है।" मेरी कथा इस प्रकार है : मैं एक नाटक कम्पनी का प्रमुख अभिनेता रहा आया। पश्चात् आपसी अनबन होने के कारण मैंने कम्पनी छोड़ दी और मैं कुछ दिन तक क्रांतिकारी सरीखा रहा। मैंने मिलमालिकों के विरोध में मजदूरों के सत्याग्रह की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन दिया। इसके पश्चात् मेरा मन सांसारिक विडम्बना से उचटा। अपने कुल धर्म जैन धर्म से मेरा रंचमात्र भीपरिचय नहीं था। मैं णमोकार मंत्र को भी नहीं जानता था, इसलिये मैंने जटाविभूतिधारी रुद्राक्षमाला से अलंकृत चिदम्बर बाबा का रूप धारण किया और साधुत्व का अभिनय करता हुआ बम्बई से काशी पहुँचा। गंगाजी में गहरे गोते लगाये। काशी विश्वनाथ गंगे के सान्निध्य में समय व्यतीत करता हुआ हर प्रकार से साधुओं के सम्पर्क में आया। मैं लौकिक कार्यों में दक्ष था। इसीलिये साधु बनने पर भी मेरी विचारशक्ति मृत नहीं हुई थी। वह मुर्छित अवश्य थी। जब मैं जटा विभूति मंड़ित संन्यासी के रुप में फिरता-फिरता सोलापुर के समीप आया तब मेरी दृष्टि में बात आई की पाखण्डी साधु के रूप में फिरकर आत्मवंचना तथा परप्रताड़ना के कार्य में लगे रहना महामूर्खता है। मैंने भिन्न-भिन्न संप्रदायों के शास्त्रों का परिशीलन किया था, उस शास्त्रज्ञान ने मुझे साहस प्रदान किया कि मैं उस साधुत्व के ढकोसले को दूर फेंक दूं। अब मैंने अपने जीवन का नया अभिनय शुरु किया। मैं सुन्दर वस्त्र आदि से सुसज्जित गुंडे के रूप में यत्र-तत्र विचरण करने लगा। शायद ही कोई ऐसा दोष हो, जो खोजने पर मुझमें न मिले। मैं अत्यन्त विषयान्ध व्यक्ति बन गया। महाराज के प्रथम दर्शन का अपूर्व प्रभाव सुयोग की बात है। उग्र तपस्वी दिगंबर श्रमणराज आचार्य शांतिसागर महाराज का कोन्नूर आना हुआ। उस समय मैं सायकिल हाथ में लिये उनके पास से बना-ठना निकला। सैकड़ों जैनी उन मुनिराज को प्रणाम करते थे। मैं वहाँ एक कोने में खड़ा हो गया। मेरी दृष्टि उन पर पड़ी। मैंने उनको हृदय से प्रणाम नहीं किया, नाममात्र के दोनों हाथ जोड़ लिये थे। उस समय कुछ बंधुओं ने महाराज से मेरे विषय में कहा, "महारा ये जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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