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________________ चौदह चास्त्रि चक्रवर्ती कहाँ से लेना है। प्रथम संस्करण १९५३ से, द्वितीय संस्करण १९७२ से या कि इसो संस्करण १९६७ से॥ १९६७ की प्रति में पृष्ठ ६१ पर १६६० का व पृष्ठ ७० पर १९८० का संस्मरण है, अतः कहा जा सकता है कि इसे १६७३ के व १९८६ के पश्चात् प्रकाशित संस्करणों में पुनः-पुनः संशोधित किया गया। अतः प्रश्न वहीं कि वहीं था कि इस पंक्ति से क्या अर्थ लिया जाय कि आज से लगभग ५० वर्ष पूर्व एक समाचार प्रकाशित हुआ था। १९५३ की प्रति में आज से ३० वर्ष पूर्व यह वाक्य है, अतः कहों यह प्रुफ रीडिंग की तो भूल नहीं थी। हमने सिवनी फोन लगाया कि इस व इसी प्रकार के अन्य संदर्भो के विषय में कोई अधिकारिक जानकारी है ? उत्तर नहीं में आया। तब गणना हमीं ने प्रारंभ की १९५३ से ५० वर्ष पूर्व १९०३ आता है, जो कि अशक्यानुष्ठान है, क्योंकि आचार्य श्री की क्षुल्लक दीक्षा १६१५ में हुई थी, व यह समाचार मुनि अवस्था का था। फिर १९७३ से की॥ १९७३ से गणना करने पर सन् १९२३ आया। हाँ!! यह ठीक था। १९२३ में कोन्नूर चातुर्मास के दौरान घटी यह घटना थी। अतः स्पष्टीकरण के लिये हमने १६५३ की प्रति को आदर्श प्रति मानते हुए इस संस्करण में इस वाक्य को इस प्रकार मुद्रित करवाते हुए प्रकरण को निःशंक करने का प्रयास किया है : आज से (१९५३ से) लगभग तीस वर्ष पूर्व... १९५३ की प्रति को आदर्श मानना इसलिये आवश्यक था, क्यों कि यदि ऐसा न किया जाय, तो प्रत्येक संस्करण में गणना परिवर्तीत करके कहना होगा कि आज से इतने वर्ष पूर्व, जो कि न सिर्फ असंभव है, अपितु हास्यास्पद भी॥ सभी संस्करणों में एक रूपता लाने के लिये हमने १६५३ की प्रति को इस संदर्भ में आदर्श प्रति अनुमानित किया। ___ इसी प्रकार के अन्य भी बहुत से विषय, जो कि प्रामाणिक होने के पश्चात् भो परिश्रम व संशोधन की चाह रखते थे, पंडित जी के अभाव में अन्य किसी अधिकारिक व्यक्ति का सद्भाव न होने से, हमने यथावत् रखना ही उपयुक्त समझा, क्यों कि वे कुशल संपादकों के ही योग्य थे॥ ____ हमें इस विषय में इस ग्रंथ पर राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा की गई प्रतिक्रिया को पंक्तियाँ स्मरण में आ गई कि ऐसे ग्रंथ की आलोचना क्या ? ये शिरोधार्य होते हैं, इनसे कुछ शिक्षा ली जाय तो वह बड़ी बात है। हमने भी इसी मार्ग का अवलंबन लिया व पुस्तक पर परिश्रम करने के मानस को विराम दिया। भले ही हमने परिश्रम करने के मानस को विराम दे दिया हो, किंतु एक प्रश्न, उत्तर को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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