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________________ इस संस्करण के संदर्भ में तेरह था । वे तो पंडितजी के स्वयं के भिन्न-भिन्न विषयों पर लिखे गये लेख थे, जिसे कि पंडित जी साहब ने स्वयं ने संपादित कर पृथक कर दिया था, अतः हमें १६७२ की प्रति को हो मौलिक प्रति मानकर कार्य को गति देनी है | इसी के साथ उन्होंने प्रूफ रिडिंग के लिये स्वयं आगे होकर उत्साह बतलाया ॥ उनके हमने १६५३ के आधार पर कम्पोजिंग किये हुए प्रूफ सिवनी भिजवा दिये । वहाँ सुपुत्र यशोधर दिवाकर ने १६७२ की प्रति अनुसार आवश्यक संशोधन किये व प्रूफ वापस भिजवा दिये । हमने यहाँ द्वितीय प्रूफ रिडिंग के लिये डॉ. महेन्द्र जैन मनुज को व मीना दिवाकर जी को अनुबंधित किया । इन दोनों ने आदरणीय ब्रह्मचारिणी सुषमाजो व संध्यादीदी के मार्ग निर्देशन में प्रुफ रिडिंग के कार्य को गति दी ।। इस प्रकार इस प्रति को प्रूफ रिडिंग मुख्यतया तीन व्यक्तियों ने मिलकर की । मैं समयाभाव के कारण इनके मध्य सेतु भर बना रहा, इससे अधिक कुछ नहीं कर सका । इस बीच पता चला कि पंडितजी ने आगे के संस्करणों में भी विषय की मांग व प्राप्त समालोचनाओं के आधार पर कुछ संशोधन किया है, जिनका कि १९७३ की प्रति में अभाव है, तब १६६७ की प्रति को आदर्श मान, उसके अनुसार कार्य की इति की गई ।। इस बीच कुछ पृष्ठ सामान्य समस्याओं को लेकर मेरे सम्मुख आये, जिसने कि मुझे चारित्र चक्रवर्ती को गंभीरता से पढ़ने को बाध्य कर दिया । मैंने १६५३, १६७३ व १६६७ के तीनों ही संस्करणों को पढ़ लिया || इन संस्करणों को पढ़ना ही मुझे इस संस्करण से प्राण-प्रण से युक्त होने को बाध्य कर गया । मेरे चित्त में चारित्र चक्रवर्ती को लेकर कुछ नया करने का विचार कौंधा ॥ प्रथम सोचा कि १९५३ के संस्करण में कई सारे उत्तम विषय, जिनमें से कुछ आगम से संबंधित थे, कुछ इतिहास से, तो कुछ संस्मरणों से, को इस संस्करण से युक्त किया जाय ।। तदनुसार कुछ प्रयास किया, जैसे आचार्य पद शीर्षक के तहत भिन्न-भिन्न ग्रंथों में दि गये आचार्य परमेष्ठी के स्वरूप को, जो कि १६५३ की प्रति में तो थे, किन्तु आगे की प्रतियों में नहीं, उन्हें पुनः दिया, इसी प्रकार संस्कृत भाषा के एक ऐतिहासिक दस्तावेज को भी सम्मिलित किया जो कि चारित्र - चक्रवर्ती महाराज के सान्निध्य में हुए श्री शिखरजी के पंचकल्याणक महोत्सव से संबंधित व १६५३ की प्रति में तो मुद्रित था, किंतु आगे के संस्करणों में नहीं || इसके अतिरिक्त इस ग्रंथ को संपादित करने हेतु एक कुशल संपादक की आवश्यकता भी हमने महसूसी, क्योंकि इस ग्रंथ में बहुत सारे विषय ऐसे थे, जो कि संशोधित करने आवश्यक थे, जैसे वातावरण शीर्षक के तहत १६६७ के संस्करण में लिखा है कि लगभग ५० वर्ष पूर्व एक समाचार प्रकाश में आया । यहाँ पर स्पष्ट नहीं है कि ५० वर्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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