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________________ ५१ शिखरजी की वंदना से त्याग और नियम आचार्य महाराज जब शिखरजी की वंदना को लगभग बत्तीस वर्ष की अवस्था में पहुँचे थे, तब उन्होंने नित्य - निर्वाण भूमि की स्मृति में विशेष प्रतिज्ञा लेने का विचार किया और जीवन भर के लिए घी तथा तेल भक्षण का त्याग कर दिया । घर आते ही इन भावि - मुनिनाथ ने एक बार भोजन की प्रतिज्ञा ले ली । रोगी व्यक्ति भी अपने शरीर रक्षण के हेतु कड़ा संयम पालने में असमर्थ होता है, किन्तु इन प्रचंड - बली सत्पुरुष का रसना इंद्रिय पर अंकुश लगाने वाला महान् त्याग वास्तव में अपूर्व था । शास्त्र में रसना इंद्रिय तथा स्पर्शन इंद्रिय को जीतना बड़ा कठिन कहा गया है। उपरोक्त प्रकार के अनेक आहार की लोलुपता त्याग कराने वाले नियमों द्वारा इन्होंने रसना इंद्रिय को अपने अधीन कर लिया तथा आजीवन ब्रह्मर्चय व्रत द्वारा स्पर्शन इंद्रिय पर विजय प्राप्त की । वे यथार्थत: पूर्ण बालब्रह्मचारी थे, जिन्होंने कभी भी स्त्री - संबंध नहीं किया । चारित्र चक्रवर्ती T रसना इंद्रिय की लालसा को छोड़कर कठोर संयम पालन करना साधारण कार्य नहीं है। लौकिक श्रेष्ठ ज्ञान संपादन करने वाला प्रकांड विद्वान् भी संयम की साधारण परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाता है । यथार्थ में वासनाओं पर विजय सरल नहीं है। निकटसंसारी जीवों की ऐसे कार्यों में स्वतः प्रवृत्ति हुआ करती है। वास्तव में बात यह है कि जब जीव को आत्मा का रस आने लगता है, तब जीभ का रस स्वयं दूर होने लगता है। शिखरजी की वंदना ने महाराज को संयम के शिखर पर चढ़ने के लिए त्यागी बनने की प्रबल प्रेरणा तथा महान् विशुद्धता प्रदान की थी । शिखरजी की मधुर घटना शिखरजी की मधुर घटना का महाराज के जीवन से सम्बन्ध है, उससे उनके अहंकार विहीन उज्ज्वल जीवन का अवबोध जगजाल में जकड़े हुए मानव को भी हुए बिना न रहेगा। पर्वत दूर से प्रिय और रमणीय लगते हैं, किन्तु उनपर आरोहण करते समय उनकी भीषणता का परिचय मिलता है। सम्मेदशिखर का पर्वत २५ वर्ग मील विस्तार वाला है। यहाँ का सर्वोन्नत शिखर ४,५०० फुट ऊंचाई पर है। शरीर में अल्पशक्ति होने पर या बुढ़ापा आने पर वंदना पैदल करना असंभव सा दिखता है, किन्तु दृढ़ निश्चय, अपार जिन भक्ति के कारण महिलाएं तक पैदल वंदना कर लिया करती हैं, जिनको एक मील जाने के लिए सवारी का आश्रय लेना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है। पर्वत पर चढ़ते समय अत्यन्त अल्प सामान जाते हैं, जो संभवत: इस बात को सूचित करता है कि उन्नति के शिखर पर जाने के लिए अल्प परिग्रह रखना आवश्यक है। पर्वत पर जाते समय श्रान्त आदमी को शरीर का भार भी असा लगता है। मोटा आदमी जल्दी थककर अपने फूले शरीर के कारण कष्ट का अनुभव For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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