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चारित्र चक्रवर्ती उनके कमण्डलु में हम जल भरते थे। उनके साथ रहा करते थे।" कोन्नूर की गुफा, शेर, आचार्य श्री व जैन दर्शन __ “आदिसागर स्वामी कोन्नूर के पास की गुफा में रहा करते थे। वहाँ मुनियों के निवास योग्य सैकड़ों गुफाएँ है। एक बार वे ध्यान कर रहे थे, तब शेर आया था।" मैंने पूछा, “महाराज! शेर के आने पर भय का संचार तो हुआ होगा?" महाराज ने कहा, “नहीं। कुछ देर के बाद शेर वहाँ से चला गया।"
मैने पूछा, “महाराज ! निर्ग्रन्थ दीक्षा लेने के बाद विहार करते हुए कभी शेर आपके पास आया था?"
महाराज ने कहा, “हम मुक्तागिरि के पर्वत पर रहते थे, वहाँ शेर आया करता था और प्रतिदिन पास में बहने वाले झरने का पानी पीकर चला जाता था। श्रमणबेलगोला की यात्रा में भी शेर मिला था। सोनागिरि क्षेत्र पर भी वह आया था। इस तरह शेर आदि बहुत जगह आते रहे, किंतु इसमें महत्व की कौन सी बात है ?"
मैने कहा, “महाराज! साक्षात् यमराज की मूर्ति व्याघ्रराज के आने पर घबड़ाहट होना तो साधारण बात है।"
महाराज ने कहा, "डर किस बात का किया जाय ? जीवन भर हमें कभी किसी वस्तु का डर नहीं लगा। जब तक कोई पूर्व का बैर न हो अथवा उस जानवर को बाधा न दो, तब तक वह नहीं सताता है।"
महाराज ने मुक्तागिरी से बड़वानी जाते हुए सतपुड़ा के निर्जन वन की एक घटना बताई कि, "विहार करते समय उस निर्जन वन में संध्या हो गयी। हम ध्यान करने को बैठ गए। साथ के श्रावक वहाँ डेरा लगाकर ठहर गये। उस समय जब शेर आया, तब श्रावक घबड़ा गये। एक शेर तो हमारी कुटी के भीतर घुस गया था। कुछ काल के पश्चात् वह बिना हानि पहुँचाये जंगल में चला गया।" लौकिक जीवन भी प्रामाणिक जीवन था
महाराज का लौकिक जीवन वास्तव में अलौकिक था। लोग लेनदेन के व्यवहार में इनके वचनों को अत्यधिक प्रामाणिक मानते थे। इनकी वाणी रजिस्ट्री किये गये सरकारी कागजातों के समान विश्वसनीय मानी जाती थी। इनके सच्चे व्यवहार पर वहाँ के तथा दूर-दूर के लोग अत्यंत मुग्ध थे। खेती के विषय में चर्चा
मैने पूछा “महाराज ! हिन्दी भाषा के प्राचीन पंडितों ने लिखा है कि श्रावक को खेती नहीं करना चाहिये, उसे सोना, चाँदी, माणिक, मोती आदि का व्यापार करना चाहिये। क्या
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