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________________ वार्तालाप आचार्य श्री के दीक्षा गुरु देवेन्द्रकीर्ति मुनि का वर्णन एक बार मैंने महाराज से उनके गुरु के बारे में पूछा था तब उन्होंने बतलाया था कि "देवेन्द्रकीर्ति स्वामी से हमने जेठ सुदी १३ शक संवत् १८३७ में क्षुल्लक दीक्षा ली थी तथा फाल्गुन सुदी एकादशी शक संवत् १८४१ में मुनि दीक्षा ली थी। वे बाल ब्रह्मचारी थे, सोलह वर्ष की अवस्था में सेनगण की गद्दी पर भट्टारक बने थे। उस समय उन्होंने सोचा था कि गद्दी पर बैठे रहने से मेरी आत्मा का क्या हित सिद्ध होगा, मुझे तो झंझटों से मुक्त होना है, इसलिये दो वर्ष बाद उन्होंने निर्ग्रन्थ वृत्ति धारण की थी। उन्होंने जीवन भर आहार के बाद उपवास और उपवास के बाद आहार रूप पारणाधारणा का व्रत पालन किया था।" आचार्य श्री जिनसे प्रभावित थे ऐसे आदिसागर मुनि का वर्णन आचार्य महाराज ने एक आदिसागर(बोरगावकर) मुनिराज के विषय में बताया था कि वे बड़े तपस्वी थे और सात दिन के बाद आहार लेते थे। शेष दिन उपवास में व्यतीत करते थे। यह क्रम उनका जीवन भर रहा। आहार में वे एक ही वस्तु ग्रहण करते थे। वे प्राय: जंगल में रहा करते थे। जब वे गन्ने का रस लेते थे, तब गन्ने के रस के सिवाय अन्य पदार्थ ग्रहण नहीं करते थे। उनमें बड़ी शक्ति थी। आम की ऋतु में यदि आम का आहार मिला, तो उस पर ही वे निर्भर रहते थे। उनकी आध्यात्मिक पदों को गाने की आदत थी। वे कन्नड़ी भाषा में पदों को गाया करते थे। जब वे भोज में आते थे और हमारे घर में उनका आहार होता था, तब वे उस दिन हमारी दुकान में रहते थे। वहाँ ही वे रात्रि को सोते थे। हम भी उनके पास में सो जाते थे। हम उनकी निरंतर वैयावृत्ति तथा सेवा करते थे। दूसरे दिन हम उनको दूधगंगा, वेदगंगा नदी के संगम के पास तक पहुँचाते थे। बाद में हम उन्हें अपने कंधे पर रखकर नदी के पार ले जाते थे। मैंने पूछा, “महाराज! एक उन्नत काय वाले पुरुष को अपने कंधे पर रखकर ले जाने में आपके शरीर को बड़ा कष्ट होता होगा?" महाराज ने कहा, “हमें रंच मात्र भी पीड़ा नहीं होती थी।" वास्तव में आचार्य श्री की शारीरिक शक्तिअपूर्व थी। उतना बड़ा भार उन्हें ऐसा मालूम होता था जैसे कोई गृहस्थ एक बालक को कंधे पर रखकर नदी के पार ले जाता हो। महाराज ने बताया था, “हम आदिसागर महाराज की तपस्या से बहुत प्रभावित थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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