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________________ ४५ चारित्र चक्रवर्ती संसार हो, तो भी हमें कोई डर नहीं है। उनकी ईश्वर भक्ति और पवित्र तपश्चर्या से बडेबड़े संकट नष्ट हुए हैं। मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि उनके पुण्य चरणों की सच्ची भक्ति तथा उनके आदेश - उपदेश के अनुसार प्रवृत्ति करने से आत्मिक शांति तथा लौकिक समृद्धि मिलती है। यह अतिशयोक्ति नहीं है। इस सत्य को मैंने अनेक गुरुभक्तों के जीवन में चरितार्थ होते हुये देखा है। उनका महान् व्यक्तित्व तथा पुण्यजीवन इस पापपूर्ण पंचमकाल में धर्मप्रचुर चतुर्थकाल की पुनरावृत्ति सा करता हुआ प्रतीत होता था। आज के युग में वे धर्म के सूर्य हैं, दया के अवतार हैं, मैं उनके चरणों को सदा प्रणाम करता हूँ। दिव्य दृष्टि महिसाल ग्राम के पाटील श्री मलगोंडा केसगोंडा आचार्य महाराज के निकट परिचय में रहे हैं । वृद्ध पाटील महोदय ने बताया, “महाराज १९२२ के लगभग हमारे यहाँ पधारे थे। उस समय उनका अपूर्व प्रभाव दिखाई पड़ा था। उनकी शांत और तपोमयमूर्ति प्रत्येक के मन को प्रभावित करती थी। उस समय की एक बात मुझे याद है। एक दिन आचार्य महाराज ने अपने साथ में रहने वाले ब्रह्मचारी जिनगोंडा (जिनदास समडोलीकर) को अकस्मात् आदेश दिया कि तुम तुरंत यहाँ से समडोली चले जाओ। वे ब्रह्मचारी जी गुरुदेव के आदेश को सुनते ही चकित हो गये । उनका मन गुरुचरणों के निकट रहने को लालायित था, फिर भी उन्हें यही आदेश मिला कि यहाँ एक मिनट भी बिना रुके अपने घर चले जाओ। इस आदेश का कारण अज्ञात था। नेत्रों से अश्रुधारा बहाते हुए उक्त ब्रह्मचारी जी ने प्रस्थान किया। जब वे समडोली पहुंचे, तो उन्हें ज्ञात हुआ कि कुछ बदमाशों ने उनकी भनेजन के पति का खेत में कत्ल कर दिया है। उस समय यह बात ज्ञात हुई कि महाराज के दिव्य ज्ञान में इस भविष्यत् कालीन घटना का कुछ संकेत आ गया था। ऐसे योगियों की महिमा का कौन वर्णन कर सकता है ? उनके दर्शन से आत्मा पवित्र होती थी।" ब्रह्मचारी जिनदास समडोली वाले उस समय से महाराज के निकट सम्पर्क में हैं, जबसे महाराज ब्रह्मचारी के रूप में अपने घर में रहा करते थे, अत: इनके संस्मरण महत्वपूर्ण है : महत्वपूर्ण संस्मरण मैं महाराज के निकट परिचय में उस समय से हूँ, जब वे अपने घर में त्यागी के वेष में रहते थे तथा ब्रह्मचर्य प्रतिमाधारी थे। वे सदाखादी का ही उपयोग करते थे। वे अपना समय ध्यान तथा अध्ययन में लगाते थे। गृह में निवास करते हुए भी वे वास्तव में सन्यासी सदृश्य गृहस्थ-सन्यासी थे। उनकी भाषा मित होती थी, किन्तु उसका अमिट प्रभाव पड़ता था। उनका खान पान सादा तथा सात्त्विक था। उनकी बात समाज में तथा जनता में बड़ी Jain Education International For Private & Personal Use Only: www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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