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लोकस्मृति
स्वप्न में दो तीन बार दर्शन दिये। अब जीवन में उनका दर्शन कहाँ होगा
निकटवर्ती वृद्ध का वर्णन
आचार्य महाराज के बाल्य जीवन से निकट परिचय रामाभीमा, सांगावे ग्रामवासी, पंचम जैन का था, जो उनके ज्येष्ठ बंधु देवगौंडा (वर्धमान स्वामी) के समान १२ वर्ष के थे। श्री भीमगडा पाटिल की अवस्था ८५ वर्ष की थी। इन दोनों वृद्ध पुरुषों से आचार्यश्री के सम्बन्ध में ये बातें ज्ञात हुई थी :
शांत प्रकृति
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हम बाल्यकाल से इनके साथ रहे हैं। ये सदा शांत प्रकृति के रहे हैं। खेल में तथा अन्य बातों में इनका प्रथम स्थान था । ये किसी से झगड़ते नहीं थे, प्रत्युत झगड़ने वाले को प्रेम समझते थे । ये बाल मंडली में बैठकर सबको यह बताते थे कि बुरा काम कभी नही करना चाहिए। वे नदी में तैरना जानते थे । उनका शारीरिक बल आश्चर्य - प्रद था । उनका जीवन बड़ा पवित्र और निरुपद्रवी रहा है । वे कभी भी किसी को कष्ट नही
थे । वे करुणा भाव पूर्वक पक्षियों को अनाज खिलाते थे । वे मेला, ठेला तथा तमाशों में नहीं आते थे। केवल धार्मिक उत्सवों में भाग लेते थे । हम लोगों को उपदेश देते थे कि अपना काम ठीक से करना चाहिये व व्यर्थ की बातों में नहीं पड़ना चाहिये । मुनि भक्त
मुनिराज के आने पर वे उनका कमण्डलु लेकर चलते थे और उनकी खूब सेवा करते थे। मुनिराज उनसे बहुत चर्चा करते थे । हजारों आदमियों के बीच में स्वामी ( मुनिराज ) का इन पर अधिक प्रेम रहा करता था । वे भोजन को घर में आते थे तथा शेष समय दुकान पर व्यतीत करते थे । वहाँ वे पुस्तक बाँचने में संलग्न रहते थे। उनकी माता का स्वभाव बड़ा मधुर था। वे हम सब लड़कों को अपने बेटे के समान मानती थी । वे हमें कहती थी, “कभी चोरी नहीं करना, झूठ नहीं बोलना, अधर्म नहीं करना । उनके घर में दूध का विपुल भंडार रहता था । "
रामा सांगावे ने कहा- "मैं महाराज के साथ २४ वर्ष तक रहा। उनके परिवार में काम कथा | मैं उनके साथ उठता बैठता तथा सोता था । उनके साथ खेत को जाता था । उनका खाना मर्यादित रहता था। वे अभक्ष्य पदार्थ नहीं खाते थे। उनके हृदय में वैराग्य का भाव छुपा रहता था। स्वामी बनने के विचार उन्होंने कभी प्रगट नहीं किये। जब उन्होंने दीक्षा ली, तब हमें अपार दु:ख हुआ । इस बात का स्मरण करते ही उस वृद्ध की आँखों से अश्रुधारा बह चली तथा कंठ से स्पष्ट शब्द निकलना बंद हो गया।
रामा ने बताया कि दीक्षा लेने के बाद जब हमें कोगनोली में उनके दर्शन हुए, तब हमने
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