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चारित्र चक्रवर्ती उनसे कहा कि स्वामी आप संसार से पार हो गये और हम अभी वहीं के वहीं हैं। इसके बाद हमारा गला भर आया।
तब महाराज ने कहा कि आत्मा का कल्याण करो। वे हमें कहते थे कि जिनेन्द्र की वाणी पर पूर्ण श्रद्धा रखो। वे अन्य धर्मों की निंदा नहीं करते थे। वे खेल तमाशों में भाग नहीं लेते थे। वे दीक्षा लेने के पूर्व अपनी बहन कृष्णाबाई के साथ शिखरजी गये थे। वहाँ से आने के बाद एकासन आदि का नियम लिया था। अप्पाजी मकदूम, तात्या शिवगोंडा पाटिल, रलप्पा चौगले (आदिसागर स्वामी) और सातौंडा (आचार्य महाराज) मिलकर शास्त्र चर्चा करते थे। ये लोग सदा धर्म ध्यान करते थे। इनके छोटे भाई कुंमगोंडा का मधुर स्वर में ग्रंथ वाचन सुनकर महाराज के मन का वैराग्य बढ़ता था। वैराग्य उत्पन्न करने का कारण कुंमगोंडा पाटिल का मधुर प्रवचन था, ऐसा हमें प्रतीत होता है। ___ महाराज खादी के वस्त्र पहनते थे। उनकी माता सत्यवती चरखा चलाती थी। अब महाराज हमारे पास से दूर हो गये। हम उनका स्वप्न में दर्शन करते हैं। हम रोज उनका नाम जपते हैं। रामा ने कहा कि आमचा तीर्थंकर सातगोंडा स्वामी आहे (शांतिसागर महाराज हमारे तीर्थंकर हैं)। उनकी वाणी प्रत्येक व्यक्ति को शांति तथा आनंद प्रदान करती थी, इसलिये उन गुरुदेव को हमारा शतश: प्रणाम है। वृद्धा का कथन ___रुक्मणी बाई (धर्मपत्नी शिवगोंडा पाटिल) वय ७० वर्ष से आचार्य महाराज
और उनकी माता के विषय में परिचय प्राप्त करने का प्रयत्न किया: माता की धार्मिकता __उस वृद्धा ने कहा कि महाराज की माता सत्यवती बाई को मैं अच्छी तरह जानती थी। वे बहुत शांत और सरल थी। उनका स्वभाव बड़ा मधुर था। वे देवता प्रकृति की थी। व्रताचरण, धर्मध्यान, परोपकार उनके जीवन के मुख्य अंग थे। मितभाषी-सत्यनिष्ठ ___ उस वृद्धा माता ने महाराज के विषय में कहा कि वे बड़े शांत, सरल और निरुपद्रवी थे। वे हठी प्रकृति के नहीं थे। वे सत्यनिष्ठ और मितभाषी थे। वे दुनिया की झंझटों से दूर रहते थे। उनकी बोली सुनकर सबको प्रेम उत्पन्न होता था। उनका चरित्र बड़ा पवित्र था। वे बड़े दयालु थे। उनके खेत में जब पक्षी आकर अनाज खाते थे, तो वे पीठ करके बैठ जाते थे, जिससे पक्षीगण निर्भय होकर अनाज खाते रहें। मुनि भक्ति
जब कभी कोई जैन निर्ग्रन्थ गुरु बस्ती में आते, तो ये उनकी बड़ी सेवा किया करते
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