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________________ लोकस्मृति असाधारण धैर्य हमने उनको दुःख तथा सुख में समान वृत्ति वाला देखा है। माता पिता की मृत्यु होने पर, हमने उनमें साधारण लोगों की भाँति शोकाकुलता नहीं देखी। उस समय उनके भावों में वैराग्य की वृद्धि दिखाई पड़ती थी। __उनका धैर्य असाधारण था। माता-पिता का समाधिमरण होने से उन्हें संतोष हआ था। उनके पास आर्तध्यान, रौद्रध्यान को स्थान न था। वे धर्मध्यान की मूर्ति थे। वे दया, शांति, वैराग्य, नीति तथा सत्य जीवन के सिन्धु थे। उनकी आत्मा बालक के समान पवित्र थी। इससे उनका बच्चों पर उत्तम वात्सल्य भाव पाया जाता था। उनमें किसी प्रकार का व्यसन नहीं था। उनमें चंचलता या क्षुद्रता नहीं थी। वे सागर के समान सर्वदा गंभीर रहते थे। उनकी स्मृति असाधारण थी। वे जिस बात की परीक्षा करते थे, वह सदा ठीक ही निकलती थी। तम्बाखू की फसल आने पर उसकी पेड़ी बाँधने में उनकी कुशलता की सभी सराहना करते थे। उन्होंने तम्बाखू को सुवास सम्पन्न करने में लवंग लगाने का विशेष प्रयोग किया था। उससे उनकी सृजन शक्ति की सभी व्यापारी तथा किसान लोग प्रशंसा करते थे। वे किसी की नकल नहीं करते थे। सभी लोग उनका अनुकरण करते थे। न्यायपूर्ण जीवन उनकी न्यायसिद्ध भाषा सर्वत्र अकाट्य थी। उनके तर्क के आगे सबका सिर झुक जाता था। बड़े-बड़े शास्त्री, श्रीमन्त, वकील, जज आदि उनकी प्रतिभा प्रसूत बातों को सुनकर चकित होते थे, उनका यह सामर्थ्य भी हम लोगों के नयन गोचर होता रहता था। दयासागर उनका दयामय जीवन प्रत्येक के देखने में आता था। दीन-दु:खी, पशु-पक्षी आदि पर उनकी करुणा की धारा बहती थी। जहाँ-जहाँ देवी आदि के आगे हजारों बकरे, भैंसे आदि मारे जाते थे, वहाँ पहुँचकर अपने प्रभावशाली उपदेश द्वारा जीव वध को ये बंद कराते थे। इससे लोग इनको ‘अहिंसावीर' कहते थे। ये दयामूर्ति के साथ ही साथ प्रेम मूर्ति भी थे। इस कारण ये सर्प आदि भीषण जीवों पर भी प्रेम करते थे। उनसे तनिक भी नहीं डरते थे। इनका विश्वास था कि ये प्राणी बिना सताये कभी भी कष्ट नहीं देते हैं। संसार से विरक्ति हम पर महाराज की बड़ी दया थी। हम उनके यहाँ सदा जाया करते थे। वे हमारे यहाँ अथवा दूसरों के यहाँ बिना कार्य के नहीं जाते थे। कोर्ट कचहरी आदि का काम ये नहीं करते थे। उनसे वे पृथक् रहते थे। वह काम छोटे भाई कुंमगौड़ा देखा करते थे। महाराज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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