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________________ लोकस्मृति ३० इस उत्तर को सुनते ही मैंने कहा, "महाराज ! आमचे पोट भरले. (मेरा पेट भर गया ।) केवल एक ही बात आपसे पूछना है कि आप सदृश महामुनिराज का पवित्र समय व्यवहारिक चर्चा में लिया और बहुत समय तक आपको कष्ट दिया, इसका क्या प्रायश्चित्त है ? " आशीर्वाद मधुर स्मितपूर्वक उन्होंने कहा, "तुम आचार्य महाराज द्वारा सौंपे गये धवल ग्रंथादि का काम बराबर करो तथा ऐसे ही अन्य धार्मिक कार्य करो यही प्रायश्चित है और यही हमारा आशीर्वाद भी है । " प्रणाम किया और प्रभु से प्रार्थना की कि मैं अधिक से अधिक वर्धमान शासन की सेवा में योग्य, सफल, सम्पन्न बनूं, ऐसी क्षमता प्राप्त हो । माता पिता की महत्ता श्री भाऊसाहब देवगौड़ा पाटिल की अवस्था ६५ वर्ष की है । ये महाराज के चचेरे भाई हैं । धार्मिक रुचि सम्पन्न हैं। उनने बताया कि महाराज के पिता श्री भीमगौड़ा पाटील खूब ऊँचे पूरे, अत्यंत बलवान, प्रभावशाली, तथा बुद्धिमान सत्पुरुष थे । वे विनोद में भी मिथ्याबात नहीं बोलते थे। उनकी प्रकृति सौम्य थी, स्वभाव मधुर तथा सर्वप्रिय था। वे नीतिसम्पन्न तथा उदारचेता मानव थे। उनके तेज के समक्ष बड़े-बड़े लोग झुक जाया करते थे । माता सत्यवती बड़ी बुद्धिमती, धर्मपरायण, सर्वप्रिय, पति - सेवा तत्पर तथा पुण्यशीला थी। वे बहुत व्रत उपवास करती थी । अन्य महिलाओं के प्रति उनमें सखी भाव पाया जाता था । उनका हमारी माता ताराबाई से बड़ा प्रेम रहता था। वे सभी बालकों का सावधानी तथा प्रेम पूर्वक पोषण करती थी । महाराज (सातगौड़ा) की विरक्त प्रकृति देख माता का अधिक लक्ष्य उनकी ओर रहा करता था । महाराज के बड़े भाई, जो आज वर्धमान सागर मुनिराज के रूप में वंदित हैं, पहले ही संन्यासी सदृश थे । वे गृहस्थ होते हुए भी मोक्ष मार्गस्थ थे । वे सेवा भावी तथा परोपकारी थे । वे अपने से छोटों तक की बात को प्रेम पूर्वक मानते थे । शांत तथा एकांतप्रिय महाराज सदा शांतभाव सम्पन्न रहते थे । ये एकांत प्रिय थे । व्यर्थ की बातें नहीं करते थे। शास्त्र चर्चा के हेतु लोगों के पास बैठते थे। विकथा कभी नहीं करते थे । इनके वचनों पर सभी को अपार विश्वास रहता था। लोग उन पर बड़ी श्रद्धा रखते थे। उनकी वाणी में विशेष आकर्षण तथा मार्मिकता पायी जाती थी । वे ऐसी न्यायपूर्ण बात कहते थे कि उसे सभी लोग मान्य करते थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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