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________________ २६. चारित्र चक्रवर्ती विशेष अनुराग युक्त बात नहीं करते थे। __इस प्रकार हम वर्धमान स्वामी से प्रश्न करके आचार्यश्री के जीवन संबंधी बातों को पूछ रहे थे कि उन्होंने पूछा कि अब और क्या पूछना है ? मैंने कहा-“महाराज आमचे पोट नाहिं भरले" (हमारा पेट अभी नहीं भरा है )। वे बोले-“तुमचे पोट ' प्रद्युम्नसारखें आहे (तुम्हारा पेट श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न कुमार के समान है)।" अनुभव उनमें विराग भाव की वृद्धि देखकर मैंने यों ही कुछ उपयोगी अध्यात्मिक प्रश्न उनसे किये, उनका उत्तर देने में उनमें स्फूर्ति आ गई। मैंने पूछा, “महाराज ! आत्मा का अनुभव कैसा है ?" __उन्होंने कहा, “शक्कर मधुर है, अत्यंत मधुर है, इससे उसकी मधुरता का वर्णन नहीं होता है। यह अनुभवगम्य है। “गोड़ कसी सांगा?"(शक्कर मिठी तो है, लेकिन कैसी? इसे कैसे कहोगे ?) इतने में एक दूसरा मनुष्य आ गया, जिसने कि सर्करा का रसास्वाद लिया था, वह तुरन्त उसकी मधुरता का स्मरण करेगा और उसके मुख में रसोद्रेग के स्मरण द्वारा समान रूप से पानी आ जायेगा। इसी प्रकार आत्मा का अनुभव वाणी के अगोचर है। उसका अनुभव करने वाले व्यक्ति, तुलना द्वारा उसका बोध प्राप्त करते हैं।" मैने पूछा, “महाराज! व्यवहार क्रिया क्या सर्वथा मिथ्या है ?" मेरा भाव था कि यदि व्यवहार धर्म मिथ्या है तो आप २८ मूलगुणादि व्यवहार धर्म का क्यों आश्रय लिये हुए हैं ? उन्होंने मेरा मनोभाव समझते हुये तुरन्त कहा, "व्यवहार खरा, निश्चय खरा, लवार कौन को कहना।"(व्यवहार ठीक है, निश्चय भी सत्य है, मिथ्या किसको कहना?) मैं चुप हो गया। कुछ क्षण के पश्चात् मैंने पूछा- “महाराज आप ६२ वर्ष के हो गये, आपको दीक्षा लिये कितने वर्ष हो चुके ?" उन्होंने कहा, "हमने बारामती में आचार्य महाराज से दिगंबर दीक्षा ली थी। इसे १३ वर्ष हो गये।" सदानंद मैंने कहा, “महाराज ! वृद्ध अवस्था में यह दीक्षा दुखःप्रद तो नहीं है।" उन्होंने सस्मित वदन से कहा, "इसमें कष्ट किस बात का है ? हमारा आत्मा तो सदानंद है।" १. जैसे प्रद्युम्न कुमारने अपने विक्रिया के द्वारा बनाये गये शरीर द्वारा माता सत्यभामा के यहाँ के सब भोज्य पदार्थो को खा लिया था, फिर भी वह भूखा का भूखा दिखाई पड़ता था।-हरिवंश पुराण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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