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________________ १६ चारित्र चक्रवर्ती देती थी। हम भी बचपन से ही साधुओं को आहार देने में योग दिया करते थे, उनके कमण्डलु को हाथ में रखकर उनके साथ जाया करते थे। छोटी अवस्था से ही हमारे मन में मुनि बनने की लालसा जाग गई थी।" पिताजी अपने पिताजी के विषय में उन्होंने बताया था कि वे प्रभावशाली, बलवान, रूपवान, प्रतिभाशाली, ऊंचे पूरे क्षत्रिय थे। वे शिवाजी महाराज सरीखे दिखते थे। उन्होंने १६ वर्ष पर्यन्त दिन में एकबार ही भोजन पानी लेने के नियम का निर्वाह किया था, १६ वर्ष पर्यन्त ब्रह्मचर्य व्रत रखा था। उन जैसा धर्माराधनापूर्वक सावधानी सहित समाधिमरण मुनियों के लिये भी कठिन है। समाधि एक दिन पिताजी ने हमसे कहा, “उपाध्याय को बुलाओ, उसे दान देकर अब हम यम समाधि लेना चाहते हैं। हमने पूछा, “आप मर्यादित काल वाली नियम समाधि क्यों नहीं लेते ?" पिताजी ने उत्तर दिया, “हमें अधिक समय तक नहीं रहना है, इसलिये हम यम समाधि लेते हैं।" उस समय हमलोगों ने उनको धर्म की बात सुनाने का कार्य निरंतर किया, दिन के समान सारी रात भी धर्माराधना का क्रम चलता रहा। प्रभात-काल में पिताजी के प्राण सूर्य उदय से पूर्व ही पंच परमेष्ठी का नाम स्मरण करते करते निकल गये। उस समय वे लगभग ६५ वर्ष के थे। अपनी माता के विषय में आचार्य श्री ने बताया था कि हमारी माता का समाधिमरण १२ घंटे में हो गया था। ऐसे धार्मिक परिवार में ऐसे विश्व- दीपक, अनुपम नररत्न का जन्म, संवर्धन तथा पोषण हुआ था। यह कहावत सत्य है कि पूत के ढंग (लक्षण) पालने में दिख जाते हैं। क्रूर बनने वाला व्यक्ति अपने बचपन में ही सर्प के समान कुटिल, क्रूरवृत्ति को दिखाया करता है। कहते हैं कि शाहजहाँ ने औरंगजेब को तत्त्वज्ञान की शिक्षा देने के लिये एक अच्छे विद्वान् को नियुक्त किया था, किन्तु अत्याचारी शासक बनने वाले औरंगजेब को बाल्यकाल में तत्त्वज्ञान की बातें नीरस और सारशून्य लगती थी। ___ औरंगजेब ने अपने शिक्षक मौलवी को पत्र में लिखा था, “आपने मेरे पिता शाहजहाँ से कहा था कि आप मुझे तत्त्वज्ञान की शिक्षा देंगे। यह सत्य है, मुझे यह अच्छी तरह स्मरण है कि आपने मुझे ख्याली बातें बरसों तक बताई, जिनके द्वारा मन को जरा भी संतोष नहीं होता था और उनकी मानव समाज को आवश्यकता भी नहीं है। कोरे विचार और सारशून्य कल्पनायें थी वे। उनमें केवल इतनी बात थी कि वे कठिनता से समझ में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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