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________________ ठाणं (स्थान) स्थान १०: टि०६ सोचा-"इन दोनों बालकों का परस्पर गाढ़ स्नेह है। यदि ये अलग हो गए तो जीवित नहीं रह सकेंगे। तो अच्छा है, मैं इनको परस्पर विवाह-सूत्र में बांध दूं।" राजा ने अपने मित्रों, पौरजनों तथा मंत्रियों से पूछा-'अन्तःपुर में जो रत्न उत्पन्न होता है, उसका स्वामी कौन है ?" सभी ने एक स्वर से कहा-'राजा उसका स्वामी है।' राजा ने परस्पर दोनों का विवाह कर डाला। रानी ने इसका विरोध किया, परन्तु राजा ने रानी की बात नहीं सुनी। राजा से अपमानित होने पर रानी ने दीक्षा ग्रहण कर ली। व्रतों का पालन कर वह मृत्यु के बाद देवी बनी। राजा पुष्पकेतु की मृत्यु के पश्चात् कुमार पुष्पचूल राजा बना और अपनी पत्नी के साथ (वहिन के साथ) भोग भोगता हुआ आनन्द में रहने लगा। इधर देवने अवधिज्ञान से अकृत्य में नियोजित अपनी पुत्री पुष्पचूला को देखा और सोचा-'यह मेरी प्राणप्रिया पुत्री है। इस कुकर्म से कहीं नरक में न चली जाए। अतः मुझे प्रयत्न करना चाहिए।' एक बार देव ने पुष्पचूला को नरक के दारुण दुःखों से पीड़ित नारकों को दिखाया। पुष्पचूला का मन कांप उठा। उसने स्वप्न की बात अपने पति से कही। पुष्पचूल ने इस उपद्रव को शान्त करने के लिए शान्तिकर्म करवाया। परन्तु देव प्रतिदिन पुष्पचूला को नरक के दारुण दृश्य दिखाने लगा। राजा ने अपने नगर के अन्यतीथिकों को बुलाकर नरक के विषय में पूछा। उनसे कोई समाधान न मिलने पर राजा ने आचार्य अन्निकापुत्र को बुला भेजा और वही प्रश्न पूछा। आचार्य ने नरक के यथार्थ स्वरूप का चित्रण किया। रानी का मन आश्वस्त हुआ। उसने नरक गमन का कारण पूछा । आचार्य ने उसके कारणों का निरूपण किया। कुछ दिन पश्चात् रानी ने स्वप्न में स्वर्ग के दृश्य देखे। आचार्य अन्निकापुत्र से समाधान पाकर वह प्रवजित हो गई। ५. प्रतिश्रुत (प्रतिज्ञा) के कारण ली जाने वाली प्रव्रज्या--- राजगह में धन्यक नामका सार्थवाह रहता था। उसका विवाह शालीभद्र की छोटी बहिन के साथ हुआ था। शालीभद्र दीक्षा के लिए तैयार हुआ। यह समाचार उसकी बहिन तक पहुंचा। उसने सुना कि उसका भाई शालीभद्र प्रतिदिन एकएक पत्नी और एक-एक शय्या का त्याग करता है। वह बहुत दुःखी हुई। उस समय वह अपने पति धन्यक को स्नान करा रही थी। उसकी आंखें डबडबा आई और दो-चार आंसू धन्यक के कंधों पर गिरे। धन्यक ने अपनी पत्नि के विवर्ण मुख को देखा और दुःख का कारण पूछा। उसने कहा-मेरा भाई शालीभद्र दीक्षा लेने की तैयारी कर रहा है और प्रतिदिन एक-एक पत्नी का त्याग करता चला जा रहा है। धन्यक ने कहा---'तुम्हारा भाई कायर है, हीनसत्त्य है। यदि दीक्षा लेनी ही है तो एक साथ त्याग क्यों नहीं कर देता।' उसने कहा-'कहना सरल है, करना अत्यन्त कठिन । आप दीक्षा क्यों नहीं ले लेते ?' धन्यक बोला-हां, तुम्हारा कहना ठीक है। आज मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं शीघ्र ही दीक्षा ले लंगा।' इस प्रतिज्ञा के आधार पर बह शालीभद्र के साथ भगवान् के पास दीक्षित हो गया। ६. जन्मान्तरों की स्मृति से ली जाने वाली प्रव्रज्या विदेह जनपद की राजधानी मिथिला के राजा कुम्भ की पुत्री का नाम मल्लीकुमारी था। उसके पूर्व भव के छह साथी थे । उनकी उत्पत्ति इस प्रकार हुई १. साकेत नगरी में राजा प्रतिबुद्धि के रूप में। २. चंपा नगरी में राजा चन्द्रच्छाय के रूप में। ३. श्रावस्ती नगरी में राजा रुक्मी के रूप में। ४. वाराणसी नगरी में शंखराज के रूप में। ५. हस्तिनागपुर नगर में राजा अदीनशत्रु के रूप में। १. परिशिष्टपर्व, सर्ग ६, पृष्ठ ६६-१०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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