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________________ ठाणं (स्थान) ६५४ स्थान १० : टि०६ दूसरी ओर राजा ने अपने दूसरे कर्मकरों को बुलाकर कहा- 'तुम छुपकर वहां जाओ और इसे इस-इस प्रकार से डराने का प्रयास करो।' राजा की आज्ञा पाकर मल्ल शिवभुति श्मशान में गया और बलि दे, पशुओं को मारकर वहीं खा गया। उधर दूसरे व्यक्ति मिलकर भयंकर शन्द करने लगे किन्तु मल्ल शिवभूति के रोमांच भी नहीं हुआ। अपने कार्य से, निवृत्त हो, वह राजा के पास गया। उसके अनूठे साहस की बात राजा के पास पहले ही पहुंच चुकी थी। राजा ने उसे अपने पास रख लिया। एक बार राजा ने अपने सेनापति को बुलाकर कहा-'जाओ, मथुरा को जीत आओ।' सेनापति ने अपनी सेना के साथ वहां से प्रस्थान किया। मल्ल शिवभूति भी साथ में था । कुछ दूर जाकर शिवभूति ने सेनापति से कहा-हमने राजा से पूछा ही नहीं कि किस मथुरा को जीतना है-मथुरा या पांडुमथुरा ? सब चिंतित हो गए। राजा को पुनः पूछना अपने सिर पर आपत्ति को लेना है । ऐसा सोचकर शिवभूति ने कहा---'दोनों मथुराओं को साथ ही जीत लेना चाहिए।' सेनापति ने कहा-'दल को दो भागों में नहीं बाँटा जा सकता और एक-एक पर विजय प्राप्त करने में बहुत समय लग सकता है।' शिवभूति ने कहा--'जो दुर्जेय है वह मुझे दी जाए।' पांडुमथुरा को जीतने का कार्य उसे सौंप दिया गया। वह वहां गया और दुर्ग को तोड़कर किनारे पर रहने वाले लोगों को उत्पीड़न करने लगा। उसके भय से सारा नगर खाली हो गया। नगर को जीतकर वह राजा के पास आया। राजा ने प्रसन्न होकर कहा-'बोल, तू क्या चाहता है ?' उसने कहा-'राजन् ! आप मुझे यह छूट दें कि मैं जहां चाहूं वहां घूम-फिर सकू।' राजा ने उसे वह छूट दे दी। अब वह घूम-फिरकर आधी रात गए घर लौटता । कभी घर आता और कभी आता ही नहीं। उसकी पत्नी उसके घर पहुंचे बिना न सोती और न भोजन ही करती। इस प्रकार कुछ दिन बीते । वह अत्यन्त निराश हो गई। एक बार उसने अपनी सासू से सारी बात कही। सासू ने कहा-जा, तू खा-पी ले और सो जा। आज मैं भूखी-प्यासी उसकी प्रतीक्षा में जागती रहूंगी। वह पत्नी सो गई। मां जागती रही। आधी रात बीत गई थी। शिवभूति आया और द्वार खोलने के लिए कहा। माता ने उपालंभ देते हुए कहा -'जहां इस समय द्वार खुले रहते हों, वहां चला जा।' यह सुन शिवभूति का मन क्रोध से भर गया। वह वहाँ से चला। साधुओं के उपाश्रय के पास आया और देखा कि द्वार खुले हैं। वह भीतर गया। आचार्य बैठे थे। वन्दना कर वह बोला-'आप मुझे प्रबजित करें।' आचार्य ने प्रव्रज्या देने की अनिच्छा प्रगट की। तब उसने स्वयं लुंचन कर डाला। आचार्य ने तब उसे साधु के अन्य उपकरण दिए। अब वे साथ-साथ बिहरण करने लगे। ३. गरीबी के कारण ली जाने वाली प्रव्रज्या एक बार आचार्य सुहस्ती कौशाम्बी नगरी में आए । मुनिजन भिक्षा के लिए नगरी में घूमने लगे। एक गरीब व्यक्ति ने उन्हें देखा। वह भूखा था। उसने मुनियों के पास जाकर भोजन मांगा। मुनियों ने कहा-'हमारे आचार्य के पास भोजन मांगो। हम वही उपाश्रय में जा रहे हैं।' वह उनके साथ उपाश्रय में गया और उसके आचार्य से भोजन देने की प्रार्थना की। आचार्य ने कहा-वत्स हम ऐसे भोजन नहीं दे सकते। यदि तुम प्रव्रज्या ग्रहण कर लो, तो हम तुम्हें भरपेट भोजन देंगे। वह क्षुधा से अत्यन्त पीड़ित था। उसने प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। ४. स्वप्न के निमित्त से ली जानेवाली प्रव्रज्या प्राचीन काल में गगानदी के तट पर पुष्पभद्र नामका एक सुन्दर नगर था। वहां के राजा का नाम पुष्पकेतु और रानी का नाम पुष्पवती था। वह अत्यन्त सुन्दर और सुकुमार थी। एक बार उसने एक युगल का प्रसव किया। पुत्र का नाम पुष्पचूल और पुत्री का नाम पूष्प चला रखा गया। वे दोनों बालक साथ-साथ बढ़ने लगे। दोनों में बहत स्नेह था। एक बार राजा ने १. आवश्यक मलयगिरिवृत्ति, पत्न, ४१८, ४१६ । २. अभिधानराजेन्द्र, भाग ७, पृष्ठ १६७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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