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ri (स्थान)
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स्थान १० : टि०६
(ख) प्राचीन काल में नासिक्य ( वर्तमान में नासिक) नामका नगर था। वहाँ नंद नामका वणिक् रहता था । उसकी पत्नी का नाम सुन्दरी था। वह उसको अत्यन्त प्रिय थी। क्षणभर के लिए भी वह उससे विलग होना नहीं चाहता था। इस अत्यन्त प्रीति के कारण लोग उसको 'सुन्दरीनंद' के नाम से पुकारने लगे ।
नंदका भाई पहले ही दीक्षित हो चुका था। उसने अपने छोटे भाई की आसक्ति के विषय में सुना और सोचा कि वह नरकगामी न हो जाए, इसलिए उसको प्रतिवोध देने वहाँ आया । सुन्दरीनंद ने उसे भक्त-पान से परिलाभित किया । मुनि ने उसको अपने पात्र साथ लेकर चलने को कहा। सुन्दरीनंद ने सोचा- थोड़े समय बाद मुझे विसर्जित कर देगा, किन्तु मुनि उसे अपने स्थान ( उद्यान ) पर ले गए। मार्ग में लोगों ने सुन्दरीनंद के हाथों में साधु के पात्र देखकर कहासुन्दरीनंद ने दीक्षा ले ली है।
मुनि उद्यान में पहुंचे और सुन्दरीनंद को प्रब्रजित होने के लिए प्रतिबोध दिया । सुन्दरीनंद पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा ।
मुनि वैकिलब्धि से सम्पन्न थे। उन्होंने सोचा - इसको समझाने का अब कोई दूसरा उपाय नहीं है । मैं इसे कुछ विशेष के द्वारा प्रलोभित करूँ। उन्होंने कहा- चलो, हम मेरु पर्वत पर घूम आएं ।' सुन्दरीनंद अपनी पत्नी को छोड़ जाने लिए तैयार नहीं हुआ। मुनि ने उसे कहा – अभी हम मुहूर्त भर में लौट आयेंगे। उसने स्वीकार कर लिया। मुनि उसे मेरु पर्वत पर ले गए और थोड़े समय बाद लौट आए। परन्तु सुन्दरीनंद का मन नहीं बदला।
तब मुनि ने एक वानरयुगल की विकुर्वणा की और सुन्दरीनंद से पूछा- वानरी और सुन्दरी में कौन सुन्दर है ? उसने कहा - भगवन् ! यह कैसी तुलना ? जितना सरसव और मेरु में अन्तर है, इतना इन दोनों में अन्तर है ।' तदनन्तर मुनि ने विद्याधर युगल की विकुर्वणा की और वही प्रश्न पूछा । सुन्दरीनंद ने कहा- भगवन् ! दोनों तुल्य है' पश्चात् मुनि देवयुगल की विकुर्वणा कर वही प्रश्न पूछा। देवांगना को देखकर सुन्दरीनंद ने कहा- 'भगवन् ! इसके समक्ष सुन्दरी वानरी जैसी लगती है ।' मुनि बोले- 'देवांगना की प्राप्ति थोड़े से धर्माचरण से भी हो सकती है।'
यह सुनकर सुन्दरीनंद का मन लोभ से भर गया और उसने प्रव्रज्या ग्रहण कर ली ।
२. रोष से ली जाने वाली प्रव्रज्या-
प्राचीन समय में रथवीरपुर नगर के दीपक उद्यान में आचार्य आर्यकृष्ण सबसृत थे। उसी नगर में एक मल्ल भी रहता था। उसका नाम था शिवभूति। वह अत्यन्त पराक्रमी और साहसिक था।
एक बार वह राजा के पास गया और नौकर रख लेने के लिए प्रार्थना की। राजा ने कहा- मैं परीक्षा लूंगा । यदि तू उसमें उत्तीर्ण हो गया तो तुझे रख लूंगा I'
एक दिन राजा ने उसे बुलाकर कहा - 'मल्ल ! आज कृष्ण चतुर्दशी है। श्मशान में चामुंडा का मन्दिर है। वहां जाओ और बलि देकर लौट आओ।' राजा ने उसको बलि चढ़ाने के लिए पशु और मदिरा भरे पात्र दिए।
१. आवश्यक के टीकाकार मलयगिरि ने यहाँ मतान्तर का उल्लेख करते हुए लिखा है कि वानरयुगल, विद्याधरयुगल और देव
युगल - ये तीनों युगल वहाँ साक्षात् देखे थे ।
आवश्यक, मलयगिरि वृत्ति पत्र ५३३ :
अन्नेभति सच्चगं चैव दिट्ठं ।
बौद्ध लेखक अश्वघोष ( ई० चौथी शताब्दी) ने 'सौंदरानंद' काव्य लिखा है उसकी कथावस्तु भी इससे मिलती-जुलती है । 'उदान' में आठ वर्ग हैं। उसके तीसरे वर्ग का नाम 'नंदवर्ग' है। इसमें मुख्य रूप से महात्मा बुद्ध के मौसेरे भाई नंद की कथा है। वह बहुत विलासी था। महात्मा बुद्ध ने उसे विविध प्रकार से समझाकर सांसारिक आसक्ति से मुक्त कर अपने धर्म में दीक्षित किया। यह कथा भी इस कथानक के समान प्रतीत होती है।
२. आवश्यक मलयगिरिवृत्ति पत्र, ५३३
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आवश्यकचूर्ण, पूर्वभाग पृष्ठ ५६६ ।
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