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१२. दीर्घ ह्रस्व ( सू० २ )
वृत्तिकार ने प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त दीर्घ ( दोह) और ह्रस्व (रहस्स) शब्दों के दो-दो अर्थ किए हैं'
(१) दीर्घ - दीर्घ वर्णाश्रित शब्द ।
(२) दूरश्रव्य-दूर तक सुनाई देने वाला शब्द, किन्तु इसका अर्थ दूरश्रव्य की अपेक्षा प्रलम्बध्वनि वाला शब्द अधिक संगत लगता है।
ह्रस्व - (१) ह्रस्ववर्णाश्रित शब्द |
(२) लघुध्वनि वाला शब्द ।
टिप्पणियाँ
स्थान - १०
३. (सू० ६)
प्रस्तुत सूत्र का प्रतिपाद्य यह है कि शरीर या किसी स्कंध से संबद्ध पुद्गल दस कारणों से चलित होता हैस्थानान्तरित होता है ।
वृत्तिकार के अनुसार दसों स्थानों की व्याख्या प्रथमा और सप्तमी - दोनों विभक्तियों से की जा सकती है।
१. खाद्यमान पुद्गल अथवा खाने के समय पुद्गल चलित होता है ।
२. परिणत होता हुआ पुद्गल अथवा जठराग्नि के द्वारा खल और रस में परिणत होते समय पुद्गल चलित
होता है।
३. उच्छ्वासवायु का पुद्गल अथवा उच्छ्वास के समय पुद्गल चलित होता है ।
४. नि:श्वासवायु का पुद्गल अथवा निःश्वास के समय पुद्गल चलित होता है ।
५. वेद्यमान कर्म-पुद्गल अथवा कर्मवेदन के समय पुद्गल चलित होता है ।
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६. निर्जीर्यमान कर्म-पुद्गल अथवा कर्म निर्जरण के समय पुद्गल चलित होता है ।
७. वैक्रियशरीर के रूप में परिणत होता हुआ पुद्गल अथवा वैक्रिय शरीर की परिणति के समय पुद्गल चलित
होता है।
८. परिचर्यमाण (मैथुन में संप्रयुक्त) वीर्य के पुद्गल अथवा मैथुन के समय पुद्गल चलित होता है ।
C. क्षाविष्टशरीर अथवा यक्षावेश के समय पुद्गल (शरीर) चलित होता है ।
१०. देहगतवायु से प्रेरित पुद्गल अथवा शरीर में वायु के बढ़ने पर बाह्य वायु से प्रेरित पुद्गल चलित होता है।
१. स्थानांगवृत्ति, पत्र ४४७ : दीर्घा - दीर्घवर्णाश्रितो दूरश्रव्यो वा ""
ह्रस्वो -- ह्रस्ववर्णाश्रयो विवक्षया लघुर्वा ।
२. स्थानांगवृत्ति, पत्र ४४८ ।
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