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________________ ठाणं (स्थान) ५६ १३४. "दुविहा आउकाइया पण्णत्ता, तं द्विविधाः अप्कायिका: जहा - परिणया चेव. अपरिणया चेव । तद्यथा— परिणताश्चैव, अपरिणताश्चैव । १३५. दुविहा ते काइया पण्णत्ता, तं द्विविधाः तेजस्कायिका: जहा - परिणया चेव, तद्यथा परिणताश्चैव, अपरिणताश्चैव । अपरिणया चेव । स्थान २ : सूत्र ९३४ - १४२ प्रज्ञप्ताः १३४. अष्कायिक जीव दो प्रकार के हैं परिणत और अपरिणत । प्रज्ञप्ताः, १३५. तेजस्कायिक जीव दो प्रकार के हैंपरिणत और अपरिणत । १३६. दुविहा वाउकाइया पण्णत्ता, तं द्विविधाः वायुकायिकाः प्रज्ञप्ताः, १३६. वायुकायिक जीव दो प्रकार के हैंजहा - परिणया चेव, परिणत और तद्यथा— परिणताश्चैव, अपरिणताश्चैव । अपरिणया चेव । १३७. दुविहा वणस्सइकाइया पण्णत्ता, तं जहा - परिणया चेव. परिणया चैव । दव्व-पदं द्रव्य-पदम् १३८. दुविहा दव्वा पण्णत्ता, तं जहा- द्विविधानि द्रव्याणि तद्यथा परिणतानि चैव, अपरिणतानि चैव । परिणता चेव, अपरिणता चेव । जीव-णिकाय-पदं १३६. दुविहा पुढविकाइया पण्णत्ता, तं जहा - गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णगा चेव । १४० दुविहा आउकाइया पण्णत्ता, तं जहा - गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णगा चेव । १४१. दुविहा तेउकाइया पण्णत्ता, तं जहा - गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णगा चेव । १४२. दुविहा वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा - गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णगा चेव । अपरिणत । द्विविधाः वनस्पतिकायिकाः प्रज्ञप्ताः १३७. वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के हैंतद्यथा परिणताश्चैव, परिणत और अपरिणत । अपरिणताश्चैव । Jain Education International प्रज्ञप्तानि, जीव-निकाय-पदम् द्विविधाः पृथिवीकायिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा — गतिसमापन्नकाश्चैव, अगतिसमापन्नकाश्चैव । द्विविधाः अप्कायिका: तद्यथा— गतिसमापन्नकाश्चैव, अगतिसमापन्नकाश्चैव । प्रज्ञप्ताः, द्विविधाः तेजस्कायिका: प्रज्ञप्ताः तद्यथा— गतिसमापन्नकाश्चैव, अगतिसमापन्नकाश्चैव । द्रव्य-पद १३८. द्रव्य दो प्रकार के होते हैं--- For Private & Personal Use Only परिणत – बाह्य हेतुओं से जिसका रूपान्तर हुआ हो । अपरिणत । जीवनिकाय-पद १३६. पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के हैं--- गतिसमापन्नक - एक जन्म से दूसरे जन्म में जाते समय अन्तराल गति में वर्तमान । अगतिसमापन्नक - वर्तमान जीवन में स्थित | १४०. अप्कायिक जीव दो प्रकार के हैं गतिसमापन्नक | अगतिसमापन्नक | १४१. तेजस्कायिक जीव दो प्रकार के हैं— गतिसमापन्नक | अगतिसमापन्नक | द्विविधाः वायुकायिकाः प्रज्ञप्ताः, १४२. वायुकायिक जीव दो प्रकार के हैंतद्यथा गतिसमापन्नकाश्चैव, अगतिसमापन्नकाश्चैव । गतिसमापन्नक | अगतिसमापन्नक | www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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