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________________ स्थान २: सूत्र १२२-१३३ ठाणं (स्थान) अहवा–चरिमसमयअजोगिकेवलि- अथवा–चरमसमयायोगिकेवलिक्षीणखीणकसायवीयरागसंजमे चेव, कषायवीतरागसंयमश्चैव, अचरिमसमयअजोगिकेवलि- अचरमसमयायोगिकेवलिक्षीणकषायखीणकसायवीयरागसंजमे चेव। वीतरागसंयमश्चैव। अथवा-चरमसमयअयोगीकेवलीक्षीणकषायवीतरागसंयम। अचरमसमयअयोगीकेवलीक्षीणकषायवीतरागसंयम। जीव-णिकाय-पदं जीव-निकाय-पदम् जोव-निकाय-पद १२३. दुविहा पुढविकाइया पण्णत्ता, तं द्विविधाः पृथिवीकायिका: प्रज्ञप्ता: १२३. पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के हैं जहा-सुहमा चेव, बायरा चेव। तद्यथा-सूक्ष्माश्चैव, बादराश्चैव। सूक्ष्म और बादर । १२४. 'दुविहा आउकाइया पण्णत्ता, तं द्विविधाः अप्कायिकाः प्रज्ञप्ताः १२४. अप्कायिक जीव दो प्रकार के हैं जहा—सुहमा चेव, बायरा चेव। तद्यथा—सूक्ष्माश्चैव, बादराश्चैव। सूक्ष्म और बादर। १२५. दुविहा तेउकाइया पण्णत्ता, तं द्विविधाः तेजस्कायिकाः प्रज्ञप्ताः १२५. तेजस्कायिक जीव दो प्रकार के हैं जहासुहुमा चेव, बायरा चेव। तद्यथा-सूक्ष्माश्चैव, बादराश्चैव। सूक्ष्म और बादर। १२६. दुविहा वाउकाइया पण्णत्ता, तं द्विविधाः वायुकायिकाः प्रज्ञप्ताः, १२६. वायुकायिक जीव दो प्रकार के हैं जहा-सुहमा चेव, बायरा चेव। तद्यथा—सूक्ष्माश्चैव, बादराश्चैव। सूक्ष्म और बादर । १२७. दुविहा वणस्सइकाइया पण्णता, तं द्विविधा: वनस्पतिकायिकाः प्रज्ञप्ताः, १२७. वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के हैं जहा–सुहुमा चेव, बायरा चेव। तद्यथा-सूक्ष्माश्चैव, बादराश्चैव। सूक्ष्म और बादर। १२८. दुविहा पुढविकाइया पण्णत्ता, तं द्विविधाः पृथिवीकायिकाः प्रज्ञप्ताः, १२८. पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के हैंजहा—पज्जत्तगा चेव, तद्यथा-पर्याप्तकाश्चैव, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । अपज्जत्तगा चेव। अपर्याप्तकाश्चव। आउकाइया पण्णत्ता, तं द्विविधा अप्कायिकाः प्रज्ञप्ताः , १२६. अप्कायिक जीव दो प्रकार के हैंजहा—पज्जत्तगा चेव, तद्यथा-पर्याप्तकाश्चैव, पर्याप्तक और अपर्याप्तक। अपज्जत्तगा चेव। अपर्याप्तकाश्चैव। द्विविधाः तेजस्कायिका: प्रज्ञप्ताः, १३०. तेजस्कायिक जीव दो प्रकार के हैंजहा—पज्जत्तगा चेव, तद्यथा-पर्याप्तकाश्चैव, पर्याप्तक और अपर्याप्तक। अपज्जत्तगा चेव। अपर्याप्तकाश्चैव। १३१. दुविहा वाउकाइया पण्णत्ता, तं द्विविधाः वायुकायिकाः प्रज्ञप्ताः, १३१. वायुकायिक जीव दो प्रकार के हैंजहा-पज्जत्तगा चेव, तदयथा पर्याप्तकाश्चैव, पर्याप्तक और अपर्याप्तक। अपज्जत्तगा चेव। अपर्याप्तकाश्चैव । १३२. दुविहा वणस्सइकाइया पण्णत्ता, तं द्विविधाः वनस्पतिकायिकाः प्रज्ञप्ताः १३२. वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के हैंजहा–पज्जत्तगा चेव, तद्यथा-पर्याप्तकाश्चैव, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । अपज्जत्तगा चेव । अपर्याप्तकाश्चैव । १३३. दुविहा पुढविकाइया पण्णत्ता, तं द्विविधाः पृथिवीकायिका: प्रज्ञप्ताः, १३३. पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के हैं परिणत-बाह्य हेतुओं से जो अन्य रूप जहा—परिणया चेव, तद्यथा-परिणताश्चैव, में बदल गया हो-निर्जीव हो गया हो। अपरिणया चेव। अपरिणताश्चैव। अपरिणत। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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