SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 967
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठाणं (स्थान) ६२६ स्थान १० : सूत्र १००-१०१ संखाण-पदं संख्यान-पदम संख्यान-पद १००. दसविधे संखाणे पण्णत्ते, तं जहा- दशविधं संख्यानं प्रज्ञप्तम, तद्यथा- १००. संख्यान के दस प्रकार हैसंगहणी-गाहा संग्रहणी-गाथा १. परिकम्मं ववहारो, १. परिकर्म व्यवहारः, १. परिकर्म, २. व्यवहार, ३. रज्जू, रज्जू रासी कला-सवण्णे य। रज्जुः राशिः कला-सवणं च । ४. राशि, ५. कलासवर्ण, ६. यावत्तावत्, जावंतावति वग्गो, यावत्तावत् इति वर्गः, ७. वर्ग, ८. घन, ६. वर्गवर्ग, घणो य तह वग्गवग्गोवि।। घनश्च तथा वर्गवर्गोऽपि ॥ १०. कल्प। कप्पो य०। कल्पश्च०। १०१. दस विधे पच्चक्खाणे पण्णत्ते, तं दशविधं प्रत्याख्यानं प्रज्ञप्तम, १०१. प्रत्याख्यान के दस प्रकार हैंजहातद्यथा १. अनागतप्रत्याख्यान-भविष्य में कर१. अणागयमतिक्कतं, १. अनागतमतिक्रान्तं, णीय तप को पहले करना। २. अतिक्रान्तप्रत्याख्यान–वर्तमान में कोडीसहियं णियंटितं चेव । कोटिसहितं नियन्त्रितं चैव। करणीय तप नहीं किया जा सके, उसे सागारमणागारं, सागारमनागारं, भविष्य में करना। परिमाणकडंणिरवसेसं। परिमाणकृतं निरवशेषम् ।। ३. कोटिसहितप्रत्याख्यान—एक प्रत्यासंकेयगं चेव अद्धाए, संकेतकं चैव अध्वायाः, ख्यान का अन्तिम दिन और दूसरे प्रत्यापच्चक्खाणं दसविहं तु॥ प्रत्याख्यानं दशविधं तु ॥ ख्यान का प्रारम्भिक दिन हो, वह कोटि सहित प्रत्याख्यान है। ४. नियन्त्रितप्रत्याख्यान-नीरोग या ग्लान अवस्था में भी 'मैं अमुक प्रकार का तप अमुक-अमुक दिन अवश्य करूंगा'इस प्रकार का प्रत्याख्यान करना। ५. साकारप्रत्याख्यान-[अपवाद सहित प्रत्याख्यान। ६. अनाकारप्रत्याख्यान-[अपवादरहित] प्रत्याख्यान। ७. परिमाणकृतप्रत्याख्यान-दत्ति, कवल, भिक्षा, गृह, द्रव्य आदि के परिमाण युक्त प्रत्याख्यान । ८. निरवशेषप्रत्याख्यान-अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का सम्पूर्ण परित्याग युक्त प्रत्याख्यान । ६. संकेतप्रत्याख्यान-संकेत या चिह्न सहित किया जाने वाला प्रत्याख्यान । १०. अध्वाप्रत्याख्यान-मुहूर्त, पौरुषी आदि कालमान के आधार पर किया जाने वाला प्रत्याख्यान। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy