SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 965
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठाणं (स्थान) ६२४ स्थान १० : सूत्र ६५-६६ विसेस-पदं विशेष-पदम् विशेष-पद ६५. दसविधे विसेसे पण्णत्ते, तं जहा- दशविधः विशेषः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- ६५. विशेष के दस प्रकार हैं १. वस्तुदोषविशेष—पक्ष-दोष के विशेष १. वत्थु तज्जातदोसे य, १. वस्तु तज्जातदोषश्च, प्रकार। दोसे एगट्ठिएति य। दोष एकाथिक इति च। २. तज्जातदोषविशेष-वादकाल में प्रतिकारेण य पडुप्पण्णे, कारणं च प्रत्युत्पन्नं, वादी से प्राप्त क्षेत्र के विशेष प्रकार। ३. दोषविशेष—अतिभंग आदि दोषों के दोसे णिच्चेहिय अट्ठमे॥ दोषोनित्यः अधिकोष्टमः॥ विशेष प्रकार। अत्तणा उवणीते य, आत्मना उपनीतं च, ४. एकाथिकविशेष-पर्यायवाची शब्दों विशेषः इति च ते दश ।। में निरुर्थक्तिभेद से होने वाला अविसेसे ति य ते दस ॥ वैशिष्ट्य । ५. कारणविशेष-कारण के विशेष प्रकार। ६. प्रत्युत्पन्नदोष विशेष----वस्तु को क्षणिक मानने पर कृतनाश शीर आकृत योग नामक दोष। ७. नित्यदोषविशेष-वस्तु को सर्वथा नित्य मानने पर प्राप्त होने वाले दोष के विशेष प्रकार। ८. अधिकदोषविशेष----वादकाल में दृष्टान्त, निगमन आदि का अतिरिक्त प्रयोग। ६. आत्मनाउपनीतविशेष-उदाहरणदोष का एक प्रकार। १०. विशेष-वस्तु का भेदात्मक धर्म। सुद्धवायाणुओग-पदं शुद्धवागनुयोग-पदम् शुद्धवागनुयोग-पद ६६. दसविधे सुद्धवायाणुओगे पण्णत्ते, दशविधः शुद्धवागनुयोगः प्रज्ञप्तः, ६६. शुद्धवचन [वाक्य-निरपेक्ष पदों] का अनु योग दस प्रकार का होता हैतं जहातद्यथा १. चंकार अनुयोग-चकार के अर्थ का चंकारे, मंकारे, पिंकारे, सेयंकारे, चकारः, मकारः, अपिकारः, सेकारः, विचार। सायंकारे, एगत्ते, पुषत्ते, संजूहे, सायंकार: एकत्वं, पृथक्त्वं, संयूथं, २. मंकार अनुयोग-मकार का विचार। संकामिते, भिण्णे। संक्रामितं, भिन्नम्। ३. पिंकार अनुयोग–'अपि' के अर्थ का विचार। ४. सेयंकार अनुयोग-'से' अथवा 'सेय' के अर्थ का विचार। ५. सायंकार अनुयोग–'सायं' आदि निपात शब्दों के अर्थ का विचार। ६. एकत्व अनुयोग-'एक वचन' का विचार। ७. पृथक्त्व अनुयोग-बहुवचन का विचार । ८. संयूथ अनुयोग-समास का विचार। ६. संक्रामित अनुयोग-विभक्ति और वचन के संक्रमण का विचार। १०. भिन्न अनुयोग-क्रमभेद, कालभेद आदि का विचार। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy