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ठाणं (स्थान)
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स्थान १० : सूत्र ६२-६४ दिट्टिवाय-पदं दृष्टिवाद-पदम्
दृष्टिवाद-पद ६२. दिदिवायस्स णं दस णामधेज्जा दृष्टिवादस्य दश नामधेयानि प्रज्ञप्तानि, ६२. दृष्टिबाद के दस नाम हैं--- एण्णत्ता, तं जहा-
तदयथा_ दिदिवाएति वा, हेउवाएति वा, दृष्टिवाद इति वा, हेतुवाद इति वा,
१. दृष्टिवाद, २. हेतुवाद, भूयवाएति वा, तच्चावाएति वा, भूतवाद इति वा, तत्त्ववाद इति वा, ३. भूतवाद, ४. तत्त्ववाद [तथ्यवाद], सम्मावाएति वा, धम्मावाएति वा, सम्यग्वाद इति वा, धर्मवाद इति वा, ५. सम्यग्वाद, ६. धर्मवाद, भासाविजएति वा, पुव्वगतेति वा, भाषाविचय इति वा, पूर्वगत इति वा, ७. भाषाविचय [भाषाविजय], अणुजोगगतेति वा, अनुयोगगत इति वा,
८. पूर्वगत, ६. अनुयोगगत, सव्वपाणभूतजीवसत्तसुहावहेति वा। सर्वप्राणभूतजीवसत्त्वसुखावह इति वा। १०. सर्वप्राणभूतजीवसत्त्वसुखावह । सत्थ-पदं शस्त्र-पदम्
शस्त्र-पद ६३. दसविधे सत्थे पण्णत्ते, तं जहा- दशविधं शस्त्रं प्रज्ञप्तम, तद्यथा- ६६. शस्त्र के दस प्रकार हैंसंगह-सिलोगो
संग्रह-श्लोक १. सत्थमग्गी विसं लोणं, १. शस्त्रं अग्निः विषं लवणं,
१. अग्नि, २. विष, ३. लवण, ४. स्नेह,
५.क्षार, ६. अम्ल, ७. दुष्प्रयुक्त मन, सिणेहो खारमंबिलं। स्नेहः क्षारः आम्लम् ।
८. दुष्प्रयुक्त वचन, ६. दुष्प्रयुक्त काया, दुप्पउत्तो मणो वाया, दुष्प्रयुक्तः मनो वाक्,
१०. अविरति
ये चारों [७, ८, ९, १०] भाव-आत्मकाओ भावों य अविरती॥ कायः भावश्च अविरतिः ।।।
परिणामात्मक शस्त्र हैं। दोस-पदं दोष-पदम
दोष-पद ६४. दसविहे दोसे पण्णत्ते, तं जहा- दशविधः दोषः प्रज्ञप्तः, तद्यथा
१४. दोष के दस प्रकार हैं
१. तज्जातदोष-वादकाल में प्रतिवादी १. तज्जातदोसे मतिभंगदोसे, १. तज्जातदोषः मतिभङ्गदोषः,
से क्षुब्ध होकर मौन हो जाना। पसत्थारदोसे परिहरणदोसे। प्रशास्तृदोषः परिहरणदोषः ।
३. मतिभंगदोष-तत्त्व की विस्मृति हो सलक्षण-कारण-हेउदोसे, स्वलक्षण-कारण-हेतुदोषः,
जाना।
३. प्रशास्तृदोष-सभ्य या सभानायक संकामणं णिग्गह-वत्थुदोसे॥ संक्रामणं निग्रह-वस्तुदोषः ।।
की ओर से होने वाला दोष। ४. परिहरणदोष-वादी द्वारा उपन्यस्त हेतु का छल या जाति से परिहार करना। ५. स्वलक्षणदोष-वस्तु के निर्दिष्ट लक्षण में अव्याप्त, अतिव्याप्त, असम्भव दोष का होना। ६. कारणदोष-कारण सामग्री के एकांश को कारण मान लेना; पूर्ववर्ती होने मात्र से कारण मान लेना। ७. हेतुदोष-असिद्ध, विरुद्ध, अनेकांतिक आदि दोष। ८. संक्रमणदोष-प्रस्तुत प्रमेय को छोड़ अप्रस्तुत प्रमेय की चर्चा करना। ६. निग्रहदोष-छल आदि के द्वारा प्रतिवादी को निगृहीत करना। १०. वस्तुदोष-पक्ष के दोष ।
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