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ठाणं (स्थान)
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स्थान १० : सूत्र ५६-६५ ५६. एवं जाव थणितकुमाराणं सलोग- एवं यावत् स्तनितकुमाराणां सलोक- ५६. इसी प्रकार सुपर्णकुमार यावत् स्तनित
पालाणं भाणियव्वं, सर्वोस उप्पाय- पालानां भणितव्यम्, सर्वेषां उत्पात- कुमार देवों के इन्द्र तथा उनके लोकपालों पव्वया भाणियव्वा सरिणामगा। पर्वताः भणितव्याः सहगनामकाः।
के स्वनामख्यात उत्पात पर्वतों का वर्णन धरण तथा उसके लोकपालों के उत्पात
पर्वतों की भांति वक्तव्य है। ६०. सक्कस्सणं देविदास देवरण्णो शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य शक्रप्रभः ६०. देवेन्द्र देवराज शक्र के शऋषभ नामक
सक्कप्पभे उप्पातपन्वते दस जोय- उत्पातपर्वतः दश योजनसहस्राणि उत्पात पर्वत की ऊपर से ऊंचाई दस णसहस्साई उड्ड उच्चत्तेणं, दस ऊर्ध्व उच्चत्वेन, दश गव्यूतिसहस्राणि हजार योजन की है। उसकी गहराई दस गाउयसहस्साइउवहेणं, मूले दस उद्वेधेन, मूले दश योजनसहस्राणि हजार गाऊ की है । मूलभाग में उसकी जोयणसहस्साई विक्खंभेणं पण्णते। विष्कम्भण प्रज्ञप्तः ।
चौड़ाई दस हजार योजन की है। ६१. सक्कस्स णं देविदस्स देवरण्णो शक्रस्य देवेन्द्रस्य देव राजस्य सोमस्य ६१. देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज सोमस्स महारणो। . महाराजस्य ।
सोम के सोमप्रभ उत्पात पर्वत का वर्णन जधा सक्कस्स तथा सर्वेसि यथा शत्रस्य तथा सर्वेषां लोकपाला- शक्र के उत्पात पर्वत की भांति वक्तव्य लोगालाणं, ससि च इंदाणं जाव नाम्, सर्वेषां च इन्द्राणां यावत् अच्चुत- है। शेष सभी लोकपालों तथा अच्युत पर्यन्त अच्चुयत्ति । सर्वेसि पमाणमेगं। इति । सर्वेषां प्रमाणमेकम् ।
सभी इन्द्रों के उत्पात पर्वतों का वर्णन शक्र की भांति वक्तव्य है। क्योंकि उन सबका क्षेत्र-प्रमाण एक जैसा है।
ओगाहणा-पदं अवगाहना-पदम्
अवगाहना-पद ६२. बायरवणस्सइकाइयाणं उक्कोसेणं बादरवनस्पतिकायिकानां उत्कर्षेण दश ६२. बादर बनस्पतिकायिक जीवों के शरीर
दस जोयणसयाई सरीरोगाहणा योजनशतानि शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता। की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन पण्णत्ता।
की है। ६३. जलचर-पंचिदियतिरिक्खजोणि- जलचर-पञ्चेन्द्रियतिर्यगयोनिकानां ६३. तिर्यग्योनिक जलचर पञ्चेन्द्रिय जीवों
याणं उक्कोसेणं दस जोयणसताई उत्कर्षण दश योजनशतानि शरीराव- के शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना एक सरीरोगाहणा पण्णत्ता। गाहना प्रज्ञप्ता।
हजार योजन की है। ६४. उरपरिसप्प-थलचर-पंचिदियति- उर:परिसर्प-स्थलचर-पञ्चेन्द्रियतिर्यग- ६४. तिर्यग्योनिक स्थलचर पञ्चेन्द्रिय उररिवखजोणियाणं उक्कोसेणं दिस योनिकानां उत्कर्षेण दश योजनशतानि
परिसों के शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना जोयणस ताई सरीरोगाहणा शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता।
एक हजार योजन की है। पण्णत्ता।
तित्थगर-पदं तीर्थकर-पदम्
तीर्थकर-पद ६५. संभवाओ णं अरहातो अभिणंदणे सम्भवाद् अर्हत: अभिनन्दनः अर्हन् ६५. अर्हत् संभव के बाद दस लाख करोड़
अरहा दसहि सागरोवमकोडिसत- दशषु सागरोपमकोटिशतसहस्रेषु व्यति- सागरोपम काल व्यतीत होने पर अर्हत् सहस्सेहि वोतिक्कतेहि समुप्पण्णे। क्रान्तेषु समुत्पन्नः ।
अभिनन्दन समुत्पन्न हुए।
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