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________________ ori (स्थान) १३ ५२. बलिस्स णं वइरोर्याणदस्स वइ बलेः वैरोचनेन्द्रस्य वैरोचनराजस्य रोयणरणो गंदे उप्पातपव्वते रुचकेन्द्रः उत्पातपर्वतः मूले दश मूले दस बावीसे जोयणसते विक्खं द्वाविंशति योजनशतं विष्कम्भेण भेणं पण्णत्ते । ५३. बलिस णं वइरोयणिदस्स वइरो - यrरणो सोमस्स एवं चेव, जधा चमरस्त लोगपालाणं तं चैव बलिस्सवि । ५४. धरणस्स णं णागकुमारिदस्स नागकुमाररण्णो धरणपत्रे उप्पातपव्वते दस जोयणसयाई उड्ड उच्चतेणं, दस गाउयसताई उवेणं, मूले दस जोयणसताई निक्खंभेणं । ५५. धरणस्स णं णागकुमारिदस्स नागकुमाररण्णो काल - बालस्स महारष्णो कालवालप्पभे उप्पातपव्वते जोयणसयाई उड्ड उच्चत्तेणं एवं चेव । ५६. एवं जाव संखवालस्स । ५७. एवं भूताणंदस्स वि । प्रज्ञप्तः । बलेः वैरोचनेन्द्रस्य वैरोचनराजस्य सोमस्य एवं चैव यथा चमरस्य लोकपालानां तच्चैव बलेरपि । Jain Education International धरणस्य नागकुमारेन्द्रस्य नागकुमारराजस्य धरणप्रभः उत्पातपर्वतः दश योजनशतानि ऊर्ध्वं उच्चत्वेन दश गव्यूतिशतानि उद्वेधेन मूले दश योजनशतानि विष्कम्भेण । धरणस्य नागकुमारेन्द्रस्य नागकुमारराजस्य कालपालस्य महाराजस्य कालपालप्रभः उत्पातपर्वतः योजनशतानि ऊर्ध्वं उच्चत्वेन एवं चैव । एवं यावत् शङ्खपालस्य । एवं भूतानन्दस्यापि । ५८. एवं लोगपालाणवि से जहा एवं लोकपालानामपि धरणस्स । धरणस्य । तस्य यथा For Private & Personal Use Only स्थान १० : सूत्र ५२-५८ ५२. वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि के रुचकेन्द्र नामक उत्पात पर्वत का मूलभाग १०२२ योजन चौड़ा है। ५३. वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि के लोकपाल महाराज सोम, यम, वैश्रमण और वरुण के स्वनामख्यात उत्पात पर्वतों की ऊपर से ऊंचाई एक-एक हजार योजन की है। उनकी गहराई एक-एक हजार गाऊ की है। मूलभाग में उनकी चौड़ाई एक- एक हजार योजन की है । ५४. नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण के धरणप्रभ नामक उत्पात पर्वत की ऊपर से ऊंचाई एक हजार योजन की है। उसकी गहराई एक हजार गाऊ की है। मूलभाग में उसकी चौड़ाई एक हजार योजन की है । ५६. नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण के लोकपाल महाराज कालपाल, कोलपाल, शैलपाल और शंखपाल के स्वनामख्यात उत्पात पर्वतों की ऊपर से ऊंचाई सौ-सौ योजन की है। उनकी गहराई एक-एक हजार गाऊ की है। मूलभाग में उनकी चौड़ाई एक-एक हजार योजन की है। ५५, ५७. भूतेन्द्र भूतराज भूतानन्द के भूतानन्दप्रभ नामक उत्पात पर्वत की ऊपर से ऊंचाई एक हजार योजन की है । उसकी गहराई एक हजार गाऊ की है। मूलभाग में उसकी चौड़ाई एक हजार योजन की है। ५८. इसी प्रकार इसके लोकपाल महाराज कालपाल, कोलपाल, शंखपाल, शैलपाल के स्वनामख्यात उत्पात पर्वतों की ऊपर से ऊंचाई एक-एक हजार योजन की है। उनकी गहराई एक-एक हजार गाऊ की है। मूलभाग में उनकी चौड़ाई एक-एक हजार योजन की है । www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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