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________________ ठाणं (स्थान) ४३. सव्वेवि णं रतिकरपव्वता दस जोयणसताई उड्ड उच्चत्तेणं, दसगाउयसताई उव्वेहेणं, सव्वत्थ समा भल्लरिसंठिता, दस जोयणसहस्साइं विक्खभेणं पण्णत्ता । ४४. रुयगवरे णं पव्वते दस जोयणसाई उब्वेहेणं, मूले दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, उर्वार दस जोयणसताई विक्खंभेणं पण्णत्ते । ४५. एवं कुंडलवरेवि । वाणुओग-पदं द्रव्यानुयोग-पदम् ४६. दस वि दविषाणुओगे पण्णत्ते तं दशविधः द्रव्यानुयोगः प्रज्ञप्तः, जहा तद्यथा - दवियाणुओगे, माउयाणुओगे, एगट्टाणुओगे, करणाणुओगे, अप्पितणप्पिते, भाविताभाविते, बाहिरबाहिरे, सासतासासते, तहणाणे, अतहणाणे । उप्पातपव्त्रय-पदं ४७. चमरस्त णं असुरिदस्स असुरकुमाररण्णो तिगिछिकडे उत्पात - पव्वते मूले दस बावीसे जोयणसते विक्खंभेणं पण्णत्ते । ४८. चमरस्त णं असुरिदस्स असुरकुमाररण्णो सोमश्स महारणो सोमप्पभे उप्पातपव्वते दस जोयणसाई, उड्ड उच्चतेणं, दस गाउय सताई उबेहेणं, मूले दस जोयणसयाई विकणं पण्णत्ते । ४६. चमरस्स णं असुरिदस्स असुरकुमाररण्णो जमस्स महारण्णो जमध्यभे उपातपव्त्रते एवं चेव । ५०. एवं वरुणस्सवि । ५१. एवं वेसमणस्सवि । ६१२ सर्वेपि रतिकरपर्वता दश योजनशतानि ऊर्ध्वं उच्चत्वेन, दशगव्यूतिशतानि उद्वेधेन सर्वत्र समाः भल्लरिसंस्थिताः, दश योजन सहस्राणि विष्कम्भेण प्रज्ञप्ताः । रुचकरः पर्वतः दश योजनशतानि उद्वेधेन, मूले दश योजनसहस्राणि विष्कम्भेण, उपरि दश योजनशतानि विष्कम्भेण प्रज्ञप्तः । एवं कुण्डलवरोऽपि । Jain Education International द्रव्यानुयोगः, एकाथिकानुयोग:, अर्पितानर्पितः, बाह्याबाह्य', तथाज्ञानं, अतथाज्ञानम् । उत्पातपर्वत-पदम् चमरस्य असुरेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य तिगिछिकूट : उत्पातपर्वतः मूले दश द्वाविंशति योजनशतं विष्कम्भेण मातृकानुयोग:, करणानुयोगः, भाविताभावितः, शाश्वताशाश्वतं प्रज्ञप्तः । चमरस्य असुरेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य सोमस्य महाराजस्य सोमप्रभः उत्पातपर्वतः दश योजनशतानि ऊर्ध्वं उच्चत्वेन दश गव्यूतिशतानि उद्वेधेन, मूले दश योजनशतानि विष्कम्भेण प्रज्ञप्तः । चमरस्यः असुरेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य यमस्य महाराजस्य यमप्रभः उत्पातपर्वतः एवं चैव । एवं वरुणस्यापि । एवं वैश्रमणस्यापि । For Private & Personal Use Only स्थान १० : सूत्र ४३-५१ ४३. सभी रतिकर पर्वतों की ऊपर की ऊंचाई एक हजार योजन की है । उनकी गहराई एक हजार गाऊ की है । वे सर्वत्र सम हैं । उनका आकार झालर जैसा है। उनकी चौड़ाई दस हजार योजन की है। ४४. रुचकवर पर्वत की गहराई एक हजार योजन की है। मूलभाग में उसकी चौड़ाई दस हजार योजन की है। ऊपर के भाग की चौड़ाई एक हजार योजन की है। ४५. कुण्डलवर पर्वत रुचकवर पर्वत की भांति वक्तव्य है । उत्पात पर्वत-पद ४६. दव्यानुयोग के दस प्रकार हैं १. द्रव्यानुयोग, २. मातृकानुयोग, ३. एकाथि कानुयोग, ४. करणानुयोग, ५. अर्पितानर्पित, ६. भाविताभावित, ८. शाश्वत शाश्वत, १०. अतथाज्ञान । ७. बाह्याबाह्य, ६. तथाज्ञान, उत्पात पर्वत - पद ४७. असुरेन्द्र असुरकुमारराज चपर के तिगिछिकूट नामक उत्पात पर्वत" का मूलभाग १०२२] योजन चौड़ा है। ४८-५१. असुरेन्द्र, असुरकुमारराज चमर के लोकपाल महाराज सोम, यक्ष, वरुण और वैश्रमण के स्वनामख्यात - सोमप्रभ, यमप्रभ, वरुणप्रभ और वैश्रमणप्रभ – उत्पात पर्वतों की ऊपर से ऊंचाई एक-एक हजार योजन की है। उनकी गहराई एक-एक हजार गाऊ की है। मूलभाग में उनकी चौड़ाई एक-एक हजार योजन की है। www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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