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ठाणं (स्थान)
पव्वय-पदं
३६. धायइसंडगा णं मंदरा दस जोयण सयाई उव्वेहेणं, धरणीतले देसूणाई दस जोयणसहस्साइं विवखंभेणं, उवर दस जोयणसयाई विवखंभेणं पण्णत्ता | ३७. पुक्खरवरदीवडगाणं मंदरा दसजोयणसयाई उब्वेहेणं, एवं चेव ।
३८. सव्वेवि णं वट्टवेयड्डूपव्वता दस जोयणसयाई उड्ड उच्चत्तेणं, दस गाउयसयाइं उब्वेहेणं, सव्वत्थ समा पल्लगसंठिता; दस जोयणसयाई विक्खंभेणं पण्णत्ता |
पव्वय-पदं
४०. माणुसुत्तरे णं पव्वते मूले दस बावीसे जोयणसते विक्खंभेणं पण्णत्ते ।
४१. सव्वेविणं अंजण पव्वता दस जोय
या उdi, मूले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, उवर दस जोयणसताई विक्खंभेणं पण्णत्ता । ४२. सब्वेविणं दहिमुहपव्वता दस जोयणसताइं उन्हेणं, सव्वत्थ समा पल्लगसंठिता, दस जोयणसहस्साई विखंभेणं पण्णत्ता ।
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पर्वत-पदम्
धातकीपण्डका मन्दरा दश योजनशतानि उद्वेधेन, धरणीतले देशोनानि दश योजनसहस्राणि विष्कम्भेण, उपरि दश योजनशतानि विष्कम्भेण
प्रज्ञप्ताः ।
पुष्करवरद्वीपार्धका मन्दरा दश योजनशतानि उद्वेधेन, एवं चैव ।
सर्वेपि वृत्तवैताद्यपर्वता दश योजनशतानि ऊर्ध्वं उच्चत्वेन, दश गव्यूतिशतानि उद्वेधेन, सर्वत्र समानि पल्यकसंस्थिताः, दश योजनशतानि विष्कम्भेण प्रज्ञप्ताः ।
खेत्त-पदं
क्षेत्र -पदम्
क्षेत्र - पद
३६. जंबुद्दीवे दीवे दस खेत्ता पण्णत्ता, तं जम्बूद्वीपे द्वीपे दश क्षेत्राणि प्रज्ञप्तानि, ३६. जम्बुद्वीप द्वीप में दस क्षेत्र हैंजहा -
तद्यथा—
भर, एरवते, हेमवते, हेरण्णवते, हरिवस्से, रम्मगवस्से, पुव्व विदेहे, अवरविदेहे, देवकुरा, उत्तरकुरा ।
१. भरत, २ ऐरवत, ३ हैमवत, ४. हैरण्यवत, ५ हरिवर्ष, ६ रम्यकवर्ष, ७. पूर्वविदेह, ८ अपरविदेह, ६. देवकुरा, १०. उत्तरकुरा ।
भरतं, ऐरवतं, हैमवतं, हैरण्यवतं, हरिवर्षं, रम्यकवर्ष, पूर्वविदेहः, अपरविदेहः, देवकुरुः, उत्तरकुरुः ।
पर्वत-पदम्
मानुषोत्तरो पर्वतो मूले दश द्वाविंशति योजनशतं विष्कम्भेण प्रज्ञप्तः ।
सर्वेपि अञ्जन- पर्वता दश योजनशतानि उद्वेधेन, मूले दश योजनसहस्राणि विष्कम्भेण, उपरि दशयोजनशतानि विष्कम्भेण प्रज्ञप्ताः । सर्वेपि दधिमुखपर्वता दश योजनशतानि उद्वेधेन सर्वत्र समाः पल्यकसंस्थिताः, दश योजन सहस्राणि विष्कम्भेण प्रज्ञप्ताः ।
स्थान १० : सूत्र ३६-४२
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पर्वत-पद
३६. धातकीपण्ड के मन्दर पर्वत एक हजार योजन गहरे हैं- भूगर्भ में हैं। भूमितल पर उनकी चौड़ाई दस हजार योजन से कुछ कम है । वे ऊपर एक हजार योजन चौड़े हैं ।
३७. अर्द्धपुष्करवर द्वीप के मन्दर पर्वत एक हजार योजन गहरे हैं- भूगर्भ में हैं। शेष पूर्ववत् ।
३८. सभी वृत्तवैताद्य पर्वतों की ऊपर की ऊंचाई एक हजार योजन की है। उनकी गहराई एक हजार गाऊ की है। वे सर्वत्र सम हैं। उनका आकार पल्य जैसा है। उनकी चौड़ाई एक हजार योजन की है।
पर्वत- पद
४०. मानुषोत्तर पर्वत का मूल भाग १०२२ योजन चौड़ा है।
४१. सभी अंजन पर्वतों की गहराई एक हजार योजन की है। मूलभाग में उनकी चौड़ाई दस हजार योजन की हैं। ऊपर के भाग में उनकी चौड़ाई एक हजार योजन की है। ४२. सभी दधिमुख पर्वतों की गहराई एक
हजार योजन की है । वे सर्वत्र सम हैं । उनका आकार पल्य जैसा है । वे दस हजार योजन चौड़े हैं।
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