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ठाणं (स्थान)
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स्थान १०:सूत्र ३२-३५ संगहणी-गाहा
संग्रहणी-गाथा १. इंदा अग्गेइ जम्मा य, १. ऐन्द्री आग्नेयी याम्या च,
१. ऐन्द्री, २. आग्नेयी, ३. याम्या, णेरती वारुणी य वायव्वा । नैऋती वारुणी च वायव्या ।
४. नैऋती, ५. वारुणी, ६. वायव्या, सोमा ईसाणी य, सौम्या ऐशानी च,
७. सोमा, ८. ईशानी, . विमला, विमला य तमा य बोद्धव्वा ॥ विमला च तमा च बोद्धव्या ॥ १०. तमा। लवणसमुद्द-पदं लवणसमुद्र-पदम्
लवणसमुद्र-पद ३२. लवणस्स णं समुद्दस्स दस जोयण- लवणस्य समुद्रस्य दश योजनसहस्राणि ३२. लवण समुद्र का दस हजार योजन क्षेत्र सहस्साइ गोतित्थविरहिते खेत्ते गोतीर्थविरहितं क्षेत्रं प्रज्ञप्तम् ।
गोतीर्थ-विरहित" [समतल] है। पण्णत्ते। ३३. लवणस्स णं समुद्दस्स दस जोयण- लवणस्य समुद्रस्य दश योजनसहस्राणि ३३. लवण समुद्र की उदकमाला" [वेला] सहस्साई उदगमाले पण्णते। उदगमाला प्रज्ञप्ता।
दस हजार योजन चौड़ी है। पायाल-पदं पाताल-पदम
पाताल-पद ३४. सव्वेवि णं महापाताला दसदसाइं सर्वेपि महापातालाः दशदशानि योजन- ३४. सभी महापातालों की गहराई एक लाख
जोयणसहस्साइं उन्हेणं पण्णत्ता, सहस्राणि उद्वेधेन प्रज्ञप्ता:, मूले दश योजन की है। मूल-भाग में उनकी चौड़ाई मूले दस जोयणसहस्साइं विक्खं- योजनसहस्राणि विष्कम्भेण प्रज्ञप्ताः, दस हजार योजन की है। मूल-भाग की भेणं पण्णत्ता, बहुमज्झदेसभागे बहुमध्यदेशभागे एकप्रादेशिक्या श्रेण्या चौड़ाई से दोनों ओर एक प्रदेशात्मक एगपएसियाए सेढीए दसदसाइं दशदशानि योजनसहस्राणि विष्कम्भेण । श्रेणी की वृद्धि होते-होते बहुमध्यदेशभाग जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं पण्णत्ता, प्रज्ञप्ताः, उपरि मखमले दश योजन- में एक लाख योजन की चौड़ाई हो जाती उरि मुहमूले दस जोयणसहस्साई सहस्राणि विष्कम्भेण प्रज्ञप्ताः।
है। ऊपर मुख-भाग में उनकी चौड़ाई दस विक्खंभेणं पण्णत्ता।
हजार योजन की है। तेसि णं महापातालाणं कुड्डा सव्व- तेषां महापातालानां कुड्यानि सर्व- उन महापातालों की भींते वज्रमय और वइरामया सव्वत्थ समा दस जोय- वज्रमयानि सर्वत्र समानि दश योजन- सर्वत्र बराबर हैं। उनकी मोटाई एक णसयाई बाहल्लेणं पण्णत्ता। शतानि वाहल्येन प्रज्ञप्तानि।
हजार योजन की है। ३५. सव्वेवि णं खुद्दा पाताला दस सर्वेपि क्षुद्राः पातालः दश योजनशतानि ३५. सभी छोटे पातालों की गहराई एक हजार
जोयणसताई उव्वेहेणं पण्णत्ता, उद्वेधेन प्रज्ञप्ताः, मूले दशदशानि योजन की है। मूल-भाग में उनकी चौड़ाई मूले दसदसाइं जोयणाई विक्खं- योजनानि विष्कम्भेण प्रज्ञप्ताः, बहु- सौ योजन की है । मूलभाग की चौड़ाई से भेणं पण्णत्ता, बहुमज्झदेसभागे मध्यदेशभागे एकप्रादेशिक्या श्रेण्या दश दोनों ओर एक प्रदेशात्मक श्रेणी की वृद्धि एगपएसियाए सेढीए दस जोयण- योजनशतानि विष्कम्भेण प्रज्ञप्ताः, होते-होते बहुमध्यदेशभाग में एक हजार सताई विक्खंभेणं पण्णत्ता, उरि उपरि मुखमूले दशदशानि योजनानि योजन की चौड़ाई हो जाती है । ऊपर मुख मुहमूले दसदसाइं जोयणाई विक्खं- विष्कम्भेण प्रज्ञप्ताः ।
भाग में उनकी चौड़ाई सौ योजन की है। भेणं पण्णत्ता। तेसि णं खुड्डापातालाणं कुड्डा सव्व- तेषां क्षुद्रापातालानां कुड्यानि सर्व- उन छोटे पातालों की समस्त भीते वज्रवइरामया सव्वत्थ समा दस जोय- वज्रमयानि सर्वत्र समानि दश योज- मय और सर्वत्र बराबर हैं। उनकी मोटाई णाई बाहल्लेणं पण्णत्ता। नानि बाहल्येन प्रज्ञप्तानि ।
दस योजन की है।
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